पौराणिक मान्यता : प्रदोष व्रत करने वाले साधक पर सदैव भगवान शिव की कृपा बनी रहती है

साल का अंतिम प्रदोष व्रत का पर्व 27 दिसंबर रविवार को मनाया जाएगा। यह प्रदोष रवि प्रदोष होगा। रवि प्रदोष व्रत को लंबी आयु की कामना के लिए रखा जाता है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की आराधना की जाती है। प्रदोष व्रत प्रत्येक माह में दो बार आता है। यह व्रत हर माह में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है।

पंडित देवेंद्र प्रताप मिश्रा के अनुसार प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्र देव से भी जुड़ा है। मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था। माना जाता है श्राप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था। तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था। जिसके शुभ प्रभाव से चंद्र देव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत करने वाले साधक पर सदैव भगवान शिव की कृपा बनी रहती है और उसकी दु:ख दारिद्रता दूर होती है व कर्ज से मुक्ति मिलती है।

पंडित प्रियरजंन त्रिपाठी के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि कर साफ वस्त्र पहनें। एक चौकी लें। उस पर गंगाजल के छींटें मारकर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं। अब इस चौकी पर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करें।

उन्हें सफेद चंदन का तिलक लगाकर सफेद फूलों की माला अर्पित करें। फिर तेल का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं। स्वयं भी सफेद रंग के आसन पर बैठकर भगवान शिव के रूप का ध्यान करें। इसके बाद प्रदोष व्रत की कथा, शिव स्तुति और शिव स्तोत्र का पाठ करें।

भगवान शिव का ध्यान लगाते हुए शिव मंत्रों का जाप करें। शिव जी की आरती करें। आरती के बाद भगवान शिव को खीर का भोग लगाएं। अगर आप खीर का भोग ना लगा पाएं तो अपनी श्रद्धा से किसी भी सात्त्विक खाद्य पदार्थ का भोग लगा सकते हैं। अंत में प्रसाद का वितरण करें।

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