पोर्न फिल्मों जो सेक्स सीन दिखता है वास्तव में होता भी है। तो आप जाने लेंं पोर्न फिल्मों में बनाए जाने वाले संबंध ऐसे तो बिलकुल भी नहीं होते जो पोर्न मूवी में दिखाए जाते हैं। हफिंगटन पोस्ट पर एक वीडियो में फूड के माध्यम से इस अंतर को बखूबी प्रस्तुत किया गया है। इसमें बताया गया है कि पोर्न सेक्स और रियल सेक्स में बहुत ज्यादा फर्क होता है।
इस फर्क को बताने के लिए पोर्न इंडस्ट्री की कुछ एक्ट्रेसेस से भी बात की गई, जिन्होंने पोर्न सेक्स और रियल सेक्स के बारे में खुलकर बात की। जूसी पिंक बॉक्स की चीफ सेक्सी ऑफिसर जिंसी लम्पकिन का कहना है कि कैमरे के सामने तेवर कुछ और ही होते है, सामान्य आदमी सिर्फ खुशी, आनंद और सेक्शुअल अनुभव के लिए ऐसा कुछ कर सकता है।
एडल्ट फिल्म की एक्ट्रेस नीना हार्टले के शब्दों में, ‘सेक्शुअल परफॉर्मेस पर पोर्न में जोर दिया जाना जरूरी होता है’।
रियल लाइफ में होने वाले सेक्स जैसा कुछ भी नहीं
इंटरनेट और दूसरे माध्यमों से जो प्रोफेशनल पोर्न दिखाया जाता है, वह रियल लाइफ में होने वाले सेक्स जैसा बिल्कुल भी नहीं होता। पोर्न की वजह से कई सारे लोग अपनी सेक्स लाइफ बरबाद भी कर लेते हैं, क्योंकि वह उसी तरह से सेक्स करना चाहते हैं, जैसा उन्होंने पोर्न फिल्मों में देखा होता है। न्यूयॉर्क की एक फिल्म प्रोडक्शन कंपनी कोर्नहाबर ब्राउन ने इस बारे में एक छोटी-सी वीडियो फिल्म जारी की है जो बताती है कि अगर पोर्न फिल्मों को भूल कर लोग सेक्स करें तो इसका आनंद कहीं ज्यादा होता है। इतना ही नहीं, यह सेक्स एक अच्छे जीवन के लिए भी काफी सहायक होता है।
चरमोत्कर्ष तक नहीं पहुंच पातीं कई महिलाएं
एक प्रतिष्ठित भारतीय पत्रिका में प्रकाशित स्टोरी में बताया गया है कि भारतीय महिलाओं में भी चरमोत्कर्ष तक न पहुंच पाने की समस्या है। मुंबई में हुई एक फिल्मी पार्टी में कई महिलाओं से बातचीत के आधार पर बताया गया है कि इसके लिए अकेले पुरुष जिम्मदार नहीं हैं। महिलाएं चरमोत्कर्ष पर तब पहुंचती हैं, जब वह स्वयं से सेक्स कर रही होती हैं और इस दौरान उनका कोई पार्टनर नहीं होता है। इतना ही नहीं, ज्यादातर महिलाएं सेक्स के दौरान चरमोत्कर्ष पर पहुंचने का अभिनय भी करती हैं। इस स्टोरी में जितनी महिलाओं से बात की गई, उनमें से ज्यादातर का मानना था कि उनका पहला चरमोत्कर्ष किसी से सहवास के दौरान नहीं, बल्कि खुद के प्रयासों के चलते हुआ।
चरमोत्कर्ष पर हो चुका है टीवी शो
अमेरिका का एक टीवी शो शोटाइम एक नए शो मास्टर ऑफ सेक्स प्रस्तुत हो चुका है है। इस शो में महिलाओं के चरमोत्कर्ष के बारे में बात की जा चुकी है । दरअसल, मास्टर ऑफ सेक्स थॉमस मेयर की बायोग्राफी ऑफ सेक्स रिसर्चर्स पर आधारित था। विलियम मास्टर्स और वर्जीनिया जॉन्सन ने मिडवेस्ट यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में दस साल तक दस हजार से भी ज्यादा महिलाओं के चरमोत्कर्ष पर शोध किया था। इस शोध से निकले परिणामों का इस शो में नाटकीय रूपांतरण किया गया था।
31 जुलाई क्लाइमेक्स डे
अमेरिका की महिलाओं की एक पत्रिका का दावा है कि महिलाएं अगर चरमोत्कर्ष का आनंद लेती हैं तो वह सही और विवेकपूर्ण निर्णय करती हैं। इस पत्रिका ने 31 जुलाई को अमेरिका का चरमोत्कर्ष का राष्ट्रीय दिन भी घोषित कर रखा है। एक शोध के मुताबिक सहवास के दौरान शरीर से जिन हार्मोन का स्राव होता है, उससे गंदी आदतों से निजात तो मिलती ही है, साथ ही नशे से भी दूर रहने की प्रेरणा मिलती है। इस वजह से महिलाएं अपने विवेक का सही उपयोग कर पाती हैं।
80 फीसद महिलाएं करती हैं चरमोत्कर्ष का अभिनय: शोध
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लंकनशायर में हुए एक शोध में पाया गया कि 80 फीसद महिलाएं चरमोत्कर्ष का अभिनय करती हैं। असल में वह सहवास के दौरान चरमोत्कर्ष तक पहुंच ही नहीं पाती हैं। वहीं, कोलंबिया विश्वविद्यालय में हुए दूसरे शोध के मुताबिक महिलाएं चरमोत्कर्ष का अभिनय इसलिए करती हैं, जिससे कि उनके पार्टनर नाराज न हो जाएं। अमेरिका के जरनल आर्काइव ऑफ सेक्शुअल बिहेवियर में प्रकाशित इस शोध में बताया गया है कि लगभग 54 फीसद महिलाएं उत्तेजना के लिए जिम्मेदार होती हैं। वहीं, पेंसिलेवेनिया विश्वविद्यालय में पिछले महीने हुए शोध के मुताबिक महिलाएं उन्हीं पुरुषों के साथ चरमोत्कर्ष पाती हैं, जो हैंडसम होते हैं और मस्क्युलर होते हैं।