हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल सोलह संस्कार बताए गये हैं। इन संस्कारों का इतिहास अति प्राचीन है, इन संस्कारों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व हैं, प्रत्येक संस्कार हमारे जीवन में बहुत महत्व रखते है। भारतीय परंपरा के अनुसार मनुष्य का प्रत्येक कृत्य संस्कार युक्त होना चाहिए। सनातन धर्म ने प्रत्येक जीव को सुसंस्कृत बनाने हेतु गर्भधारण से विवाह तक प्रमुख सोलह संस्कार बताए हैं। इन संस्कारों का उद्देश्य बीजदोष न्यून करने हेतु संस्कार किए जाते हैं।
गर्भदोष न्यून करने हेतु संस्कार किए जाते हैं। पूर्व जन्मों के दुष्कृत्यों के कारण देवता तथा पितरों का श्राप हो तो उनकी बाधा दूर करने हेतु तथा उनके ऋण से मुक्त होने के लिए एवं कुलदेवता, इष्टदेवता, मातृदेवता,प्रजापति,विष्णु, इंद्र, वरुण, अष्टदिपाल, सविता देवता,अग्निदेवता आदि देवताओं को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु संस्कार किए जाते हैं। बालक आरोग्यवान, बलवान तथा आयुष्यमान हो इस हेतु संस्कार किए जाते हैं।
बालक बुद्धिमान, सदाचारी, धर्म के अनुसार आचरण करने वाला हो, इस हेतु संस्कार किए जाते हैं। अपने सत्कृत्य तथा धर्म परायण वृत्ति से आत्मोन्नति कर अपने वंश की पूर्व की बारह तथा आगे की बारह पीढियों का उद्धार करनेकी क्षमता बालक में आए, इस हेतु संस्कार किए जाते हैं। स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति कर ब्रह्मलोक अथवा मोक्ष प्राप्ति की क्षमता अर्जित करने हेतु संस्कार किए जाते हैं। सनातन धर्म के अनुसार प्रत्येक का प्रत्येक कृत्य तथा उस पर किया गया प्रत्येक संस्कार परमेश्वर को प्रसन्न करने हेतु होता है। क्योंकि परमेश्वर की कृपा होने पर ही हमारा उद्देश्य पूर्ण हो सकता है। ये सर्व संस्कार बालक के माता-पिता तथा गुरु को करना चाहिए।
प्रत्येक संस्कार के मुहुर्त में कौन-कौन से नक्षत्र, तिथि आदि का उपयोग होता है अर्थात किस नक्षत्र, तिथि में कौन सा संस्कार किया जाना चाहिए यहां इसका उल्लेख किया जा रहा है। भारतीय परंपरा के अनुसार मनुष्यका प्रत्येक कृत्य संस्कारयुक्त होना चाहिए। इसलिए ही सनातन धर्म ने प्रत्येक जीव को सुसंस्कृत बनाने हेतु गर्भधारण से विवाह तक प्रमुख सोलह संस्कार बताए है।