यूपी के लखीमपुर खीरी की सदर कोतवाली क्षेत्र के महेवागंज पुलिस चौकी पर तैनात एक दरोगा लाल रंग की ब्रेजा कार से निकले तो हर किसी की निगाह उन्हीं पर टिक गई। एक तो कार शानदार दूसरे उसपर दो-दो स्टीकर। एक पुलिस का तो दूसरा ‘ठाकुरवाद’ का। वीडियो वायरल होते ही दरोगा जी ‘ठाकुरवाद’ पर घिरे तो उन्होंने सफाई देनी शुरू कर दी। पहले तो कहा कि मैने ध्यान से देखा ही नहीं था कि क्या लिखा है। फिर सारी गलती परिवार पर डाल दी।
महेवागंज चौकी इंचार्ज चेतन सिंह तोमर ने एक निजी चैनल के सवालों का जवाब देते हुए कहा, ‘मैं इसे ढंग से नहीं पढ़ पाया था। गलती हो गई होगी। परिवार के लोग गाड़ी लेकर गए थे। उन्होंने लिखवा दिया होगा। ध्यान में आते ही ‘ठाकुरवाद’ तुरंत हटवा दिया गया है।’
बता दें कि हाल में यूपी पुलिस और परिवहन विभाग ने प्रदेश भर जातिसूचक शब्द लिखी गाड़ियों को चालान करने और उनके मालिकों के खिलाफ कार्यवाही करने का अभियान चलाया था। प्रदेश भर में ‘जाट’, ‘गुर्जर’, ‘राजपूत’, ‘ब्राह्मण’, ‘क्षत्रिय’, ‘ठाकुर’, ‘यादव’ आदि लिखी गाड़ियों को रोककर कार्यवाही की गई। सख्ती के चलते तमाम लोगों ने ऐसे स्टीकर्स, लोगो या स्टाइलिश नंबर प्लेट्स आदि को गाड़ियों से हटवा भी दिया। लेकिन इस बीच लखीमपुर खीरी में एक दरोगा जब खुद ही ‘ठाकुरवाद’ लिखी गाड़ी का इस्तेमाल करते दिखे तो लोगों ने लाजिमी तौर पर इस पर सवाल उठाए।
दरोगा ने ‘ठाकुरवाद’ लिखाए जाने को परिवार की गलती बताकर मामले को टालने की कोशिश की लेकिन लोगों का कहना है कि यदि परिवार ने लिखवाया तो भी यह गलत बात है। गाड़ी पर पुलिस का स्टीकर भी लगा हुआ था। यदि गाड़ी परिवार इस्तेमाल करता था तो उस पर पुलिस का स्टीकर क्यों है? और यदि गाड़ी दरोगाजी ही इस्तेमाल करते थे तो उस पर ‘ठाकुरवाद’ कैसे और क्यों लिखवाया गया? लोगों का कहना है कि यदि पुलिस के लोग खुद ही कानून तोड़ेंगे और जातिवाद का प्रदर्शन करेंगे तो फिर सरकार की मंशा के अनुरूप वे ऐसी प्रवृतियों पर अंकुश कैसे लगाएंगे।