इतिहास में यह पहला मौका है जब मोक्ष नगरी गया में अपने तारणहार का इंतजार कर रहे पितरों को मोक्ष के लिए एक साल की प्रतीक्षा करनी होगी। उनके ऊपर भी करोना का ग्रहण लग गया है। कोरोना के कारण इस बार मोक्ष नगरी गया का पितृपक्ष मेला स्थगित कर दिया गया है। पंडा समाज के विरोध के कारण पर्यटन विभाग ने अपने पूर्व घोषित ऑनलाइन पिंडदान को लेकर भी चुप्पी साध ली है।
पितृपक्ष में गयाजी के पांच कोस के दायरे में रहते हैं पितर
पितृपक्ष में सभी पितर गयाजी के पांच कोस के दायरे में रहते हैं। पितरों को तृप्त करने के लिए उनके पुत्र-पौत्र गयाजी आते हैं। यह परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है। हर पितृपक्ष में यहां बसी 54 पिंडवेदियां जीवंत हो उठती हैं। उन पर प्रतिदिन पिंड और तर्पण होता है। चाहे वह विष्णुपद वेदी हो या फिर प्रेतशिला स्थित पिंडवेदी। प्रेतशिला से धर्मारण्य तक की दूरी भले आज 20 किमी हो, लेकिन धार्मिक पुस्तकें इस दूरी को भी पंच कोस में ही मानती हैं। इन पांचों कोस में जीवंत रहती हैं पितरों की वे आत्माएं, जो अपने पुत्र की श्रद्धा को श्राद्ध के रूप में ग्रहण करती हैं।
कोरोना संक्रमण के काल में लगा प्राचीन परंपरा पर ग्रहण
कोरोना के कारण इस बार गयाजी की प्राचीन परंपरा बाधित हुई है। धार्मिक अनुष्ठान पर ग्रहण लग गया है। चूंकि प्रशासन से अनुमति नहीं मिली, लिहाजा कर्मकांड के लिए श्रद्धालुओं के आगमन की इच्छा पूरी नहीं हुई।
मुख्य वेदी का द्वार बंद, दूसरे दिन भी पसरा सन्नाटा
कोरोना काल में तारणहार विष्णुपद वेदी का प्रवेश द्वार बंद है। मुख्य द्वार पर एक-दो सामान्य पुजारी यूं ही बैठे रहते हैं। भूले-भटके आसपास का कोई यजमान आ गया, कुछ दे गया तो ग्रहण कर लेते हैं। मंदिर का भीतरी भाग पूरी तरह बंद है। फल्गु को जलांजलि के लिए पुत्रों का इंतजार है। पास का देव घाट भी चुप है। कोई कोलाहल नहीं, भीड़ को संभालने के लिए कहीं कोई पुलिस वाले नहीं। यहां एक दिन में लगभग एक हजार से अधिक पिंड पड़ते थे। गुरुवार को पितृपक्ष का दूसरे दिन भी दिन फीका दिख रहा है। धार्मिक आयोजन नहीं होने से गया में व्यावसायिक गतिविधियां ठप हैं। विदेशों से आने वाले पर्यटकों से गुलजार रहने वाला हवाईअड्डा भी अच्छे दिन का इंतजार कर रहा है।