रमजा़न माह आखिरी अशरे में चल रहा है. एक प्रशिक्षंण का महीना है. इस महीने का मकसद इंसान को सब्र, शुक्र और परहेज़ करने की ट्रेनिंग देना है.
इस महीने में इज्जत, दौलत और एैशो आराम पाने की तमन्ना करना और उसके लिए कोशिश करना न कोई गुनाह है और न कोई बुरी बात. बल्कि हकी़कत यह है कि यह सब चीजे इंसान के लिए ही है. ये कह सकते हैं कि इस माह में हर मुस्लिम बंधू को खास ध्यान देना पड़ता है. इनको पाने की कोशिश करने मे इमानदारी की हदो से बाहर न जाने को ही सब्र कहते है. रोजा हमे सब्र करने का प्रशिक्षंण देता है कि दिन के खत्म होने तक हम पर खाना पीना जायज़ नही है. अगर रोजे की हालत मे रोजदार को कोई गुस्सा दिलाए या लडने पर उभारे तो आप को उससे बदला नही लेना है बल्कि यह कह कर कि मै रोजे से हूॅ, अलग हो जाना है एक महीने तक रोज ऐसे रोजे रखने पर इंसान सब्र करना सीख जाता है. यानि रोजे के समय आपको हर चीज़ पर काबू करना पड़ता है ताकि उन गलतियों से आपका रोजा न टूटे. इसके अलावा रोजेदार कभी अहंकारी व घमण्डी नही हो सकता दूसरो पर जुल्म करना,
दूसरो को सताना, दूसरो की सही बात न सुनना, लोगों की मद्द न करना और दूसरो को अपने से नीचा समझने की मानसिकता घमण्ड के ही रूप है. इस्लाम मे हर तरह के अहंकार घमण्ड, तकब्बूर, को सख्ती से मना किया गया है. परहेज़- ईश्वर (अल्लाह) द्वारा मनुष्य को जिन चीजो़ं या कार्यो से परहेज़ करने का आदेश दिया गया है. उनसे बचना परहेज़ कहलाता है. जैसे झूठ बोलना, दूसरो को सताना, गलत तरह से पैसा कमाना, अशान्ति फैलाना, साहिबे हैसियत हो कर गरीबो की मद्द न करना, शर पैदा करना, शराब का सेवन करना आदि वह कार्य है. जिनका करना पाप और गुनाह है.