विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि 1972 में हुए शिमला समझौते का परिणाम यह हुआ कि प्रतिशोध की आग में जल रहे पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में समस्याएं उत्पन्न करना शुरू कर दिया। पड़ोसी मुल्क से निपटने में पहले की सरकारों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने पाकिस्तान से निपटने के साहसिक कदमों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की।

साथ ही कहा कि विश्व मंच पर शुरुआती दौर में भारत की स्थिति काफी अच्छी थी लेकिन चीन के साथ 1962 की जंग ने देश को काफी नुकसान पहुंचाया। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया अगर बदली हुई है तो हमें भी उसी के मुताबिक बात करने और एक दूसरे से जुड़ने की आवश्यकता है। अलग-थलग पड़ने से कोई मदद नहीं मिलने वाली है।
आतंकवाद से निपटने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि मुंबई आतंकी हमले के वक्त क्या हुआ और दूसरी ओर उड़ी व पुलवामा हमले के खिलाफ कैसी कार्रवाई की गई, इसे समझने की जरूरत है। उन्होंने मुंबई हमले के बाद तत्कालीन सरकार की ओर से प्रतिक्रिया में कमी बताई। वहीं क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) में भारत के न जुड़ने पर जयशंकर ने कहा कि कोई बुरा समझौता करने से अच्छा है कोई समझौता ही न किया जाए।
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