छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में शहर से लगभग 90 किलोमीटर दूर सुदूर व सीमावर्ती इलाके में साल भर पहले तक अंधेरा ही अंधेरा था। आजादी के 70 साल बाद भी यहां हालात ऐसे थे, जैसे यहां रहने वाले सभी परिवार अंधेरे की गुलामी में बसर कर रहे हों। पहाड़ और वनों से घिरे होने की वजह से यहां पहुंचने का रास्ता आज भी दुर्गम है। यही वजह है कि शाम ढलते ही गांव जंगल में ही गुम हो जाता था। पहाड़ी कोरबा परिवार अपने अपने घरों में ही दुबक जाते थे। आसपास जंगली जानवरों का खतरा मंडराता था, वहीं घनघोर अंधेरे में पूरी रात घर के भीतर गुजारने की मजबूरी भी थी।

साल भर मौसम के अनुसार, दुख सहना पड़ता था। बारिश के दिनों में आंधी तूफान और विषैले जीव-जंतुओं से खतरा मोल लेना, ठंडी के दिनों में पूरी रात घर के बाहर लकड़ी सुलगा कर उजाला करना और गर्मी के दिनों में चाहकर घर के बाहर भी कोई सो नहीं सकता था। लामपहाड़ के इस इलाके में रहने वाले माटीमाड़ा के लोग मानों एक अलग दुनिया में जी रहे थे।
कोई उनकी समस्याओं की सुध नहीं ले रहा था। एक दिन इस दूरस्थ और बीहड़ इलाके में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अचानक उड़नखटोला से उतरे। लोकसुराज अभियान के तहत बीते वर्ष तपती दुपहरी में इमली के पेड़ के नीचे चौपाल लगाई और ग्रामीणों से योजनाओं के क्रियान्वयन पर चर्चा करने के बाद उनकी समस्याओं को जाना।
अधिकांश की जुबान से बिजली नहीं होने की जानकारी की बात मुख्यमंत्री को पहले तो आश्चर्य हुआ कि उजार्धानी कोरबा जिले के इस गांव में अब तक बिजली कैसी नही पहुंच पाई। उन्होंने तुरंत ही सबके सामने घोषणा की कि एक साल के भीतर यहां न सिर्फ बिजली पहुंचाई जाएगी, बल्कि कुछ मुहल्लों तक जहां बिजली पहुचाने में कुछ बाधा है, वहां सौर ऊर्जा से गांव को रौशन बनाया जाएगा।
सदियों तक अंधेरे में रहते आये ग्राम माटीमाड़ा के पहाड़ी कोरबा महिला छंदनी बाई ने बताया कि गर्मी के दिनों में जब आसमान में चांद दिखता था तब ही कुछ रौशनी गांव में होती थी। गर्मी की वजह से उजली रात में अधिकांश पहाड़ी कोरवा घर के बाहर सोते थे। अब जबकि सौर उर्जा से खंभे में लाइट लगी है तो उसके जलने से रोशनी चांदनी रात की तरह लगती है। इसलिए अब पहले की तुलना में कोई खतरा नजर नहीं आता। रात में बिना किसी डर के घर के बाहर सो सकते है।
पहले शाम ढलते ही स्कूल जाने वाले पहाड़ी कोरवा बच्चों का पढ़ाई से नाता टूट जाता था। वे चाहकर भी कुछ पढ़ नहीं सकते थे। न ही उनके माता-पिता बच्चों को किताब पढ़ने के लिए बोल पाते थे। महीने भर का मिट्टी तेल कुछ दिनों तक चिमनी जलाने से ही खत्म हो जाता था। ऐसे में अंधेरे में कुछ भी पढ़ाई संभव नहीं था।
सौर ऊर्जा से लाइट लगने के बाद माटीमाड़ा ग्राम की शुकवारी बाई, काजोल, रविता और लाम पहाड़ कोरवापारा की फूलेश्वरी, कमली जैसी बालिकाओं को न सिर्फ पढ़ाई करने का अवसर मिल गया है, बल्कि उन्हें एक बेहतर भविष्य बनाने का अवसर लोकसुराज अभियान से मिला है।
मुख्यमंत्री के चौपाल लगाए जाने के बाद कलेक्टर पी. दयानंद के निर्देशन में पहाड़ी कोरवा के बसाहटों वाले इलाके कोरबापारा, उंरावपार एवं माटीमाड़ा ग्राम को पूरी तरह से विद्युतीकृत करने की योजना बनाई। लामपहाड़ के कोरबापारा, उरावपारा तक बिजली पहुचने का काम भी पूरा किया गया। बिजली विभाग द्वारा खंभे लगाकर गांव को पूरी तरह से रोशन बनाया गया।
चूंकि लामपहाड के ही माटीमाड़ा का क्षेत्र दुर्गम क्षेत्र वाला इलाका है, ऐसे में यहा जिला प्रशासन द्वारा जिला खनिज विकास निधि तीन किलोवाट क्षमता का सोलर पावर प्लांट क्रेडा द्वारा 11 लाख 41 हजार की लागत से स्थापित किया गया। कुल 15 घरेलू कनेक्शन और 10 स्ट्रीट लाइट लगाई गई है। इसी तरह उरांवपारा में चार किलोवाट का सोलर पांर प्लांट 15 लाख 94 हजार रुपये की लागत से स्थापित किया गया है। यहा 24 घरों में कनेक्शन एवं 16 स्ट्रीट लाइट लगाई गई है।
शहर से लगभग 90 किलोमीटर दूर लामपहाड़ तक बिजली पहुंचाना बिजली विभाग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। टेढ़े-मेढ़े रास्ते और पहाड़ तक बिजली के तार पहुचाने और खंभे लगाने में कठिनाई हुई। चूंकि लामपहाड़ तक खंभा लगाने और तार खींचने वाले रास्ते में दो दर्जन से अधिक गांव भी थे ऐसे में अरसेना, लेमरू, देवपहरी, कुटरूवा, कदमझेरिया, हरदीमौहा, गढ़ उपरोड़ा जैसे गांव को भी इसका लाभ मिला।
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