पंजाब में गेहूं का सीजन समाप्त हो चुका है। किसान आगामी फसल की तैयारी करने लगे हैं, लेकिन इससे पहले किसान दूधारू पशुओं के लिए खास ताैर पर पौष्टिक तत्वों से भरपूर आचार बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए मक्का बोया जा रहा है। पहले किसान मक्का की बिजाई को कोई खास तवज्जो नहीं देते थे लेकिन अब सीजन दर सीजन इसे तवज्जो दी जा रही है। मक्का की फसल जहां मात्र दो माह से भी कम समय में तैयार हो जाती है, वहीं इसका पशु खुराक के तौर पर इस्तेमाल भी लाभदायक सिद्ध हो रहा है। इलाके के कुछ किसानों ने मक्के की बुवाई कर ली है, तो कुछ इस काम में लगे हुए हैं। आचार के लाभ पता चलने पर इस बार किसान धड़ाधड़ मक्के की बुवाई कर रहे हैं।

लोंगोवाल इलाके के किसान बलजिंदर सिंह, रणजीत सिंह व जगदेव सिंह ने बताया कि उन्होंने पिछले वर्ष 3 एकड़ में आचार बनाने के लिए मक्के की बुवाई की थी, जो 50-60 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस पर किसानों की कोई अधिक लागत भी नहीं है। इसका आचार बनाकर इसे पशु खुराक के तौर पर आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। खास बात यह है कि यह चारा पशुओं को लंबे समय तक खुराक के तौर पर दिया जा सकता है और इससे दुधारु पशु भी तंदरुस्त रहते हैं। अन्यथा इसके अलावा हरा चारा बीजने के लिए किसान को वर्ष भर अपनी जमीन रिजर्व रखनी पड़ती है, किंतु इस मक्के को आचार के रूप बनाकर रख लेते हैं, जिसका कई माह तक इस्तेमाल हो जाता है।
महीने भर के लिए गड्ढे में दबा देते हैं मक्का
इन किसानों ने कहा कि मक्का जब तैयार हो जाता है तो उसे मशीन के जरिए कुतरा करके जमीन में गहरा गड्ढा खोदकर दबा दिया जाता है। ऊपर से काली तिरपाल डालकर ढंक दिया जाता है ताकि बारिश व हवा अंदर न जा सके। इसके बाद करीब 30-40 दिन के बाद उसमें आचार बनकर तैयार हो जाता है। इस उपरांत इसका जरूरत अनुसार पशुओं के चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। पशु भी इसे खूब पसंद करते हैं। किसानों ने बताया कि आचार बनाने का लाभ यह है कि इससे तूड़ी व हरे चारे सहित बाकी खल, फीड वगैरह की बचत होती है। किसान अपनी मनमर्जी से थोड़ा बहुत हरा चारा या तूड़ी मिला सकता है, लेकिन अकेला आचार भी पूरे वर्ष काम चला सकता है।
बेहद कम लागत में पशुओं की खुराक तैयार
किसान बलजिंदर सिंह ने बताया कि एक एकड में करीब 8 किलो मक्के का बीज पड़ता है। इस बार उन्होंने करीब 9 एकड़ में मक्के की बुवाई की है। पिछले वर्ष उसका तूड़ी व हरे चारे का खर्चा बिलकुल भी नहीं हुआ। पहले वह एक एकड़ अपने चार पशुओं के लिए हरे चारे की बुवाई करते था। खल, फीड का खर्चा अलग से होता था। एक वर्ष में चार- पांच पशु करीब 7-8 ट्राली तूड़ी खा जाते हैं। एक फीड की बोरी 1300 रुपये की पड़ती है, जो केवल 10-12 दिन ही चलती है। रोजाना 10 किलो फीड पड़ती है।
पशु पालकों के लिए वरदान बना मक्के का आचार
रोजाना हरा चारा एक पशु को करीब 15-20 किलो पड़ता है। हरे चारे की कटाई, बाद में मशीन के जरिए उसका कुतरा करने और खेत से घर लाने का खर्च अलग से होता है। तूड़ी की बात की जाए तो 600-700 रुपये प्रति क्विंटल रेट चल रहा है। रोजाना चार- पांच पशुओं को सुबह, शाम को 80-90 किलो तक तूड़ी लग जाती है। अब अचाार का विकल्प किसानों के लिए बेहतर साबित हो रहा है। इससे हजारों रुपये की तूड़ी, फीड व हरे चारे का खर्चा बच रहा है।
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