पंजाब सरकार पर हाईकोर्ट ने ठोका 50 हजार का जुर्माना

भर्ती पूरी होने के बाद नियमों में संशोधन को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अवैध और गैर-जिम्मेदाराना बताया। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा करना सीधे तौर पर उन चुनिंदा लोगों की मदद करना है जो विज्ञापन के अनुसार पात्र ही नहीं थे।

भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद नियमों में संशोधन पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे अवैध बताते हुए पंजाब सरकार के गैर-जिम्मेदाराना रवैए पर 50 हजार रुपये का जुर्माना ठोका है। हाईकोर्ट ने कहा कि इस प्रकार का निर्णय कानूनी राज के लिए अभिशाप है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन भी है। इन टिप्पणियों के साथ ही हाईकोर्ट ने पात्रता परीक्षा की अनिवार्यता समाप्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है और केवल पात्रता परीक्षा पास आवेदकों का ही परिणाम जारी करने का आदेश दिया है।

याचिका दाखिल करते हुए अमनदीप सिंह व अन्य ने हाईकोर्ट को बताया था कि पंजाब सरकार ने फिजिकल एजुकेशन शिक्षक के 168 पद के लिए भर्ती निकाली थी। इसके विज्ञापन में पंजाब राज्य शिक्षक पात्रता परीक्षा (पीएसटीईटी) पास करना आवेदकों के लिए अनिवार्य था। इसके बाद जब भर्ती प्रक्रिया पूरी हो गई और केवल अंतिम परिणाम जारी होना बाकी था तो 26 अगस्त 2023 को नियमों में संशोधन कर दिया गया और पात्रता परीक्षा की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि पंजाब सरकार का आदेश निंदनीय है और राज्य ने गैर-जिम्मेदाराना तरीके से काम करके अनावश्यक मुकदमेबाजी पैदा की।

विज्ञापन आठ जनवरी 2022 को जारी किया गया था और परिणाम छह अक्तूबर 2022 को घोषित किया गया था। दस्तावेजों की जांच 19 दिसंबर, 2022 को पूरी की गई थी लेकिन राज्य ने परिणाम की घोषणा से पहले विज्ञापन में कोई सुधार नहीं किया या शुद्धिपत्र जारी नहीं किया। 26 अगस्त 2023 के शुद्धिपत्र-सह-सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से नियम को बदलने का प्रयास अवैध है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह तो तय सिद्धांत है कि खेल शुरू होने के बाद इसके नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता।

पात्रता परीक्षा पास नहीं करने वालों ने अयोग्य होने के बावजूद भर्ती में आवेदन किया और पीएसटीईटी उत्तीर्ण करने की शर्त को हटाने के लिए पंजाब सरकार को एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत किया था। मामले की जांच के लिए सरकार द्वारा गठित एक समिति ने पाया कि शारीरिक शिक्षा मास्टर्स की भर्ती के लिए पीएसटीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य नहीं था। इसके बाद सार्वजनिक नोटिस-सह-शुद्धिपत्र जारी करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा करना तो सीधे तौर पर उन चुनिंदा लोगों की मदद करना है जो विज्ञापन के अनुसार पात्र ही नहीं थे।

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