भारतीय नौसेना ने बड़े सौदे आबंटित करने की नीति में बड़ा बदलाव किया है। सरकारी कंपनियों को नामांकन के आधार पर बड़ा रक्षा ठेकों का काम दिए जाने की जगह निजी कंपनियों को निविदा के जरिए काम देने का फैसला नौसेना ने किया है। इसके तहत भारतीय नौसेना के लिए चार ‘एलपीडी वेसल’ बनाने का काम दो निजी कंपनियों को दिए जाने की तैयारी है। 12 अरब डॉलर के इन सौदों के बारे में शुक्रवार को खत्म हुई नौसेना कमांडरों की बैठक में फैसला किया गया। चार दिनों तक नई दिल्ली में चले इस सम्मेलन में वायु सेना और थल सेना के साथ साझा अभियानों में पुख्ता समन्वय कायम करने पर जोर दिया गया। ‘एलपीडी वेसल’ की खेप को नौसेना में इसी उद्देश्य से शामिल किया जा रहा है।
‘एलपीडी वेसल’ के जरिए 1430 कमांडो, मिसाइल प्रणाली, एक तारपीडो प्रणाली, मशीन गन और 35 टन तक के वजनी हेलीकॉप्टर समुद्री मार्ग से अग्रिम मोर्चे तक पहुंचाए जा सकते हैं। इन वेसल के जरिए थल सेना और वायु सेना के आयुधों को भी ढोया जा सकता है। नौसेना और रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, जल्द ही चार ऐसे वेसल को हासिल करने के लिए खरीद प्रक्रिया शुरू की जाएगी। एक ऐसे वेसल की कीमत तीन बिलियन डॉलर होगी। 2013 से ऐसे वेसल को नौसेना के बेड़े में शामिल किए जाने की योजना पर काम चल रहा है। घरेलू निजी कंपनियां- लार्सन एंड टुब्रो और रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड को वित्तीय और तकनीकी आधार पर इस काम के लिए सटीक पाया गया है।
अभी देश की कोई रक्षा उत्पादन कंपनी एलपीडी वेसल बना पाने में सक्षम नहीं है। एलपीडी के लिए एलएंडटी ने स्पेन की नवांशिया और रिलायंस ने फ्रांस की डीसीएनएस के साथ हाथ मिलाया है। निजी शिपयार्ड कंपनियों से पहला एलपीडी वेसल अगले आठ साल में मिल जाने की उम्मीद है। इसके बाद हर दो साल के अंतराल पर बाकी वेसल बेड़े में शामिल किए जा सकेंगे। भारतीय नौसेना के पास अभी एंफीबियन डॉक- आइएनएस जलाश्व है, जो अमेरिका से 1997 में मिला था। नौसेना कमांडरों के सम्मेलन में समुद्री सुरक्षा और वायुसेना व थल सेना को सूचना एवं दस्तावेजी मदद देने की विभिन्न योजनाओं को लेकर चर्चा हुई। थल सेना और वायुसेना के साथ और अधिक समन्वय बढ़े, इस पर जोर दिया गया। ‘एलपीडी वेसल’ या एंफीबियन वाहन नौसेना में शामिल किया जाना इसी उद्देश्य का हिस्सा है।