नौकरियों में आरक्षण का मामला एक बार फिर चर्चा में तब आ गया जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में शासकीय नौकरी पर अब सिर्फ मध्य प्रदेश के बच्चों का अधिकार होगा। इससे रोजगार का संकट मिटेगा और प्रदेश के विकास में मूल निवासियों का योगदान होगा। हालांकि प्रदेश ने यह कदम पहले भी उठाया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।
दरअसल, संविधान में किसी राज्य के निवासी को दूसरे राज्य में रोजगार के लिए जाने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है। फिर भी अलगअलग राज्यों में रोजगार के लिए मूल निवासियों के लिए विभिन्न प्रबंध हैं। संविधान क्या कहता है और विशेषज्ञों की क्या राय है, राज्यों में कैसे नियम हैं और यह स्थिति कितनी तार्किक है, विवरण देती रिपोर्ट।
पहले नियम बना फिर रोक लगी: आदिवासी बहुल इलाका होने के कारण झारखंड के 24 में से 13 जिले अधिसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। राज्य सरकार ने पिछले दिनों शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की और इन 13 जिलों में सौ फीसद पद स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित कर दिए। हाई कोर्ट में इसे चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि सौ फीसद आरक्षण असंवैधानिक है। सितंबर 2019 में अदालत ने माना कि सौ फीसद आरक्षण गलत है और नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी।
रोजगार पर दिल्ली सरकार: दिल्ली सरकार ने रोजगार की दिशा में हाल ही में एक जॉब पोर्टल जरूर शुरू किया है। यह पोर्टल नौकरी देने और लेने वालों को मिलाने का काम करता है। कुछ ही दिनों में इस पोर्टल पर करीब साढ़े छह हजार कंपनियां दस लाख से अधिक रिक्तियां डाल चुकी हैं, वहीं करीब नौ लाख लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया है। इससे लॉकडाउन के दौरान नौकरी और कर्मचारी गंवाने वालों दोनों को लाभ हुआ है।
आरक्षण पर रुके फैसले
हाई कोर्ट के निर्देश पर उप्र सरकार ने दूसरे प्रदेशों की महिलाओं को राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण का लाभ देने का शासनादेश जारी किया है। इस शर्त के साथ कि यह आरक्षण न्यायालय के अंतिम निर्णय के अधीन होगा। उप्र सरकार ने हाई कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ विशेष अपील दाखिल की है छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग के अलावा शेष हिस्से में अनुसूचित जनजाति को 32%, अनुसूचित जाति को 13% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण है। इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोरों को शिक्षा में (सवर्ण) आरक्षण 10 फीसद है। कुल 82 फीसद आरक्षण होने के कारण पूरा मामला हाई कोर्ट में है
नियुक्ति से संबंधित विषयों में अवसर की समानता: भारत के संविधान के भाग-3 में मूल अधिकारों का वर्णन किया गया है। इनमें पहला मूल अधिकार समता का अधिकार है, जिसके अंतर्गत अनुच्छेद -14 में यह व्यवस्था की गई है कि देश के किसी भी राज्य में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा। साथ ही अनुच्छेद-15 में लिखा है कि राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
अनुच्छेद-16 (1) के अनुसार, राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 13 में मूल अधिकारों के असंगत या कम करने वाली विधियों के बारे में बताया गया है। अनुच्छेद 13(2) में कहा गया है कि राज्य इस प्रकार की कोई विधि नहीं बनाएगा, जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती हैं या कम करती हैं और इस खंड के उल्लंघन के लिए बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी। हालांकि इस अनुच्छेद-13 की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए संविधान के किसी संशोधन के लिए लागू नहीं होगी। इसके साथ ही अनुच्छेद 15(5) में कहा है कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों की उन्नति या अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान करने से यह अनुच्छेद नहीं रोकेगा।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत सिन्हा ने बताया कि जब देश एक है तो यहां के नागरिक भी अलग-अलग राज्यों के नहीं बल्कि एक देश के हैं। राज्यवार आरक्षण के नाम पर इन्हें बांटना ठीक नहीं है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई पहले एक राज्य रहा हो और बाद में विभाजित हो गया हो तो नागरिक स्थान के लिहाज से भले ही अलग हो गए हों लेकिन अधिकार के आधार पर नहीं होने चाहिए। उनके लिए अलग-अलग नियम बना देना राष्ट्रवाद के खिलाफ है।