नेत्रहीन मां को करा रहा तीर्थ, 36000 किमी पैदल चलकर, आज का श्रवण कुमार ये है…

बचपन से आपने श्रवण कुमार की कथा के बारे में तो सुना ही होगा. जिन्हें आज भी मातृ-पितृ भक्ति के लिए जाना जाता है. श्रवण कुमार के माता-पिता नेत्रहीन थे लेकिन उन्होंने कभी भी उन्हें नेत्रहीन होने का अहसास नहीं होने दिया. लेकिन ऐसे कई लोग है इस दुनिया में जो अपने माता पिता के लिए कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. हम बताने जा रहे हैं मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले कैलाश गिरी ब्रह्मचारी असल ज़िंदगी के श्रवण कुमार हैं. जानते हैं इनके बारे में. 

करीब 20 साल पहले कैलाश गिरी की मां ने भी अपने बेटे से ‘चारधाम यात्रा’ की इच्छा ज़ाहिर की थी. मां की इस इच्छा को पूरा करने के लिए कैलाश करीब 20 साल पहले अपनी नेत्रहीन वृद्ध मां को कंधों पर डोली के सहारे चारधाम यात्रा के साथ कई तीर्थों का भ्रमण कराने निकल पड़े थे. अब भी ये सिलसिला जारी है. जानकर हैरानी होगी कि वो अब तक अपनी मां को डोली के सहारे कंधों पर बैठकर 36000 किमी पैदल चल चुके हैं. चौंकाने वाली बात है कि कैलाश ने जिस वक़्त ये यात्रा शुरू की थी, उस वक़्त वो महज 25 साल के थे, आज लगभग 50 साल के हैं. 

ऐसे लोग आज के समय में बहुत कम मिलते हैं. उसी तरह कैलाश ने मां की एक इच्छा पूरी करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन मां की सेवा में लगा दिया. कैलाश की मां कीर्ति देवी अब 92 साल की हो चुकी हैं, लेकिन इस बेटे ने अपनी मां को कभी अकेला महसूस होने नहीं दिया. यात्रा के दौरान कैलाश गिरी लोगों द्वारा दिए गए सामान से अपनी मां के लिए ख़ुद खाना बनाया करते थे और अपने हाथों से उन्हें खाना खिलाते थे. कैलाश गिरी नेत्रहीन मां को कंधों पर डोली के सहारे हर दिन 5 से 6 किमी उठाकर ले जाते थे. इस दौरान धूप हो या छांव, वे सुबह 6:30 से शुरू कर शाम सूरज ढलने तक पैदल यात्रा करते रहे. दिन के समय में वो किसी मंदिर में कुछ समय का विश्राम कर लिया करते थे. कैलाश अब तक अपनी मां को बद्रीनाथ, द्वारिका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम आदि चार धाम के साथ ही गंगासागर, तिरुपति बालाजी, ऋषिकेश, हरिद्वार, केदारनाथ, अयोध्या, चित्रकूट, पुष्कर और इलाहाबाद जैसे पवित्र तीर्थों की यात्रा करा चुके हैं. 

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com