तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने शुक्रवार को भारतीय लोक प्रशासन संस्थान में भारत के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की सराहना की। उन्होंने आईआईपीए को संबोधित करते हुए, भारतीय प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के साथ अपनी बैठकों को याद किया।
दलाई लामा ने भारत के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को सराहा
उन्होंने कहा, ‘भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां सभी प्रमुख वैश्विक परंपराएं एक साथ रहती हैं। धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत अद्भुत है। हालांकि, मुझे महात्मा गांधीजी से मिलने का अवसर नहीं मिला। बाद में, मुझे इंदिरा गांधी, पंडित नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री से मिलने का अवसर मिला। इन सभी महान नेताओं से जब हम मिले, हमने बात की तो मुझे वास्तव में सम्मान मिला।’
भारत को बताया अद्भुत स्थान
दलाई लामा ने कहा कि अब भारत के पास करुणा और अहिंसा के लिए 1000 साल पुराना विचार है। ये दो चीजें वास्तव में हैं। उन्होंने कहा कि न केवल इंसान बल्कि इस ग्रह पर रहने वाले जानवर को भी करुणा और अहिंसा की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वास्तव में दुनिया और मानवाता को इन दोनों- करुणा और अहिंसा की जरूरत है। भारत में अपने प्रवास के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा, ‘भारत में रहना अद्भुत है। मैं भारत सरकार का अतिथि हूं। मैं इसकी सराहना करता हूं।’
भारत में पूरी तरह स्वतंत्र- दलाई लामा
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा कि उनकी तिब्बत लौटने की कोई योजना नहीं है, क्योंकि वह भारत में पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। इससे पहले दलाई लामा ने कहा था कि वह भारत के लंबे समय तक मेहमान हैं, जो अपने मेजबान को कभी कोई परेशानी नहीं देंगे। उन्होंने कहा, ‘हमारे भाइयों और बहनों हम विशेष रूप से कहते हैं कि मैं एक शरणार्थी बन गया और इस देश में रहता हूं, इसलिए मैंने भारतीय विचार, भारतीय तर्क सीखा। अब बाद में भारत सरकार का अतिथि बन गया। मेरा पूरा जीवन मैंने इस देश में बिताया। मैं वास्तव में इसकी सराहना करता हूं।’
उन्होंने कहा, ‘उस दिन मैंने उस प्राचीन भारतीय विचार को सीखा। अब भारत सरकार के अतिथि के रूप में यहां रहने के बाद, वह ज्ञान केवल ज्ञान नहीं बल्कि एक व्यावहारिक चीज है।’