निर्भया कांड के दोषियों को पूरा देश फांसी पर लटकता हुआ देखना चाहता है लेकिन दोषी पवन गुप्ता के दोनों चाचा जुग्गी लाल व सुभाष चंद्र कुछ और ही चाहते हैं। यही नहीं पवन के गांव में भी लोग कोर्ट के फैसले से मायूस हैं। वे कहते हैं कि जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था लेकिन कार्ट के सामने हम कर भी क्या सकते हैं।
पवन के चाचा कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में अपने गांव जगन्नाथपुर आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने कहा था कि उन्हें पवन की पैदाइश का साल तो ठीक से याद नहीं है, मगर जिस समय घटना हुई, उस समय वह बालिग नहीं था।
दोनों चाचा दिल्ली में ही रहते हैं। वे उन दिनों खेती के लिए गांव आए हुए थे। उनका कहना था कि पवन का जन्म दिल्ली में ही हुआ था और वह कभी भी गांव नहीं आया।
पवन गुप्ता के गांव में कोई निर्भया केस पर खुलकर नहीं बोलना चाहता है। गांव के प्रधान पति संजय कुमार कहते हैं कि निर्भया कांड गांव के माथे पर एक कंलक है, इस कलंक को कभी धोया नहीं जा सकता है। वहीं सुखई ने कहा कि पवन ने जो किया वो गलत था लेकिन उसे फांसी की सजा नहीं होनी चाहिए।
वहीं चाचा जुग्गी लाल व सुभाष चंद्र भी मानते हैं कि निर्भया कांड में पवन का नाम आने से उसका गांव जरूर सुर्खियों में आ गया। उसकी हरकत पर आज भी गांव के लोगों को यकीन नहीं होता।
इसका जिक्र होते ही उनका सिर शर्म से झुक जाता है। निर्भया कांड के बाद पवन की मां की मौत पर पिता एक बार अपने गांव जगन्नाथपुर आए थे, लेकिन वह क्रिया-कर्म के बाद लौट गए।
दो भाई व दो बहन में सबसे बड़ा पवन दुकानदारी के अलावा ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी कर रहा था। पिता ने यहां लालगंज थाने के महादेवा चौराहे के पास गांव में भी जमीन ली थी और उस पर मकान बनवाना शुरू किया था, मगर 16 दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद से काम ठप हो गया। मौजूदा समय में वह खंडहर जैसा दिखता है।
पवन के पिता, दादी और बहन आदि परिवार के सदस्य आरकेपुरम इलाके में उसके साथ संत रविदास कैंप में रहते थे। उसकी बहन और दादी ने 2017 में फांसी की सजा के बाद अदालत और कानून पर टिप्पणी की थी।
दोनों का मानना था कि उन्हें न्याय पाने के लिए प्रयास करने का मौका नहीं दिया गया। पवन के चाचा भी दिल्ली में रहकर काम करते हैं। निर्भया कांड के बाद पवन की मां की मौत पर पिता एक बार अपने गांव जगन्नाथपुर आए थे, लेकिन वह क्रिया-कर्म के बाद लौट गए।