नागा साधु का नाम सुनते ही मन में एक छवि बन जाती है. जिसमे लंबी- लंबी जटाएं, तन भस्म से लिपटा हुआ, चाहे कोई भी मौसम हो नागा साधु शरीर पर कपड़ों के नाम पर केवल लंगोट पहने हुए ध्यान आता है. कहते हैं कि लोग ऐसे लोगों को नागा साधु के नाम से पुकारते हैं. ऐसे में ऐसा भी कहा जाता है कि साधु सालों साल आखाड़ों में ही रहते हैं और सिर्फ कुंभ के वक्त ही दिखाई देते हैं. वहीं बाकी समय वह कहा रहते हैं यह कोई नहीं जानता. इसी के साथ यह 12 साल की कठिन तपस्या के बाद ही एक आम इंसान नागा साधु बन पाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाएं भी नागा साधु बन सकती हैं. जी हाँ, बहुत कम लोग नागा साध्वी के बारे में जानते हैं जिनके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
कहते हैं नागा साधु की दीक्षा देने से पहले उसके स्वयं पर नियंत्रण की स्थिति को परखा जाता है और तीन साल तक दैहिक ब्रह्मचर्य के साथ मानसिक नियंत्रण को परखने के बाद ही नागा साधु बनने के लिए दीक्षा देते है. कहते हैं दीक्षा लेने से पहले ख़ुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करवाया जाता है और हिंदू धर्म में पिंडदान व श्राद्ध मरने के बाद किया जाता है जो नागा साधु साध्वी बनने के पहले करवाते हैं. इसके अनुसार सांसारिक सुख दुःख से हमेशा के लिए मुक्ति होना मानते हैं.
अब आइए जानते हैं कैसे महिला बन जाती है नागा साधु – आपको बता दें कि महिला नागा संन्यासन बनने से पहले अखाड़े के साधु-संत उस महिला के घर परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच पड़ताल करते हैं और इन सभी में सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि नागा साधु बनने से पहले महिला को खुद को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान करना पड़ता है और अपना मुंडन भी करवाना पड़ता है तब जाकर उस महिला को नदी में स्नान के लिए भेजा जाता है. वहीं उसके बाद महिला नागा संन्यासन पूरा दिन भगवान का जाप करती है और सुबह ब्रह्ममुहुर्त में उठ कर शिवजी का जाप करती है. उसके बाद शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं. आपको बता दें कि उन्हें नागा साधुओं के साथ भी रहना पड़ता है और छोटे-बड़े साधु-संत उन्हें माता कहकर बुलाते हैं. आपको बता दें कि महिला नागा साधुओं को नग्न स्नान नहीं करने देते हैं और कुंभ मेले में भी ऐसा नहीं होता.