हिन्दू धर्म में मंदिर जाना और मूर्ति पूजा को श्रेष्ठ माना जाता है। अक्सर हम माता रानी के दर्शन करने भी जाते है। माता रानी के दर्शन के बाद जब तक भक्त भैरव दर्शन न कर लें तब तक दर्शन अधूरा माना जाता है. भैरव दर्शन करने वालों पर ही माता रानी की कृपादृष्टि होती है।
भैरव दर्शन करना क्यों ज़रूरी:
कहा जाता है कि एक बार मां वैष्णो देवी के परम भक्त श्रीधर ने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया। माता रानी कन्या का रूप धारण करके वहां पहुंची। माता ने श्रीधर से गांव के सभी लोगों को भंडारे के लिए निमंत्रण देने को कहा।
निमंत्रण पाने के बाद गांव के कई लोग श्रीधर के घर भोजन करने के लिए पहुंचे। तब कन्या रुपी माँ वैष्णो देवी ने सभी को भोजन परोसना शुरू किया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई। लेकिन भैरवनाथ भोजन में मांस और मदिरा का सेवन करने की ज़िद करने लगे।
कन्या ने खूब समझाने की कोशिश की जिससे क्रोध में आकर भैरवनाथ ने कन्या को पकड़ना चाहा। लेकिन उससे पहले वायु का रुप लेकर मां त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली।
इसी पर्वत की एक गुफा में पहुंच कर माता ने नौ माह तक तपस्या की। मान्यता के अनुसार उस वक़्त हनुमानजी माता की रक्षा के लिए उनके साथ ही थे।
भैरवनाथ भी उनका पीछा करते हुए उस गुफा तक पहुंचे। तब माता गुफा के दूसरे छोर से बाहर निकल गई। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी के नाम से प्रसिद्ध है।
गुफा के दूसरे द्वार से बाहर निकलने के बाद भी भैरवनाथ ने माता का पीछा नहीं छोड़ा। तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया।
भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में जा गिरा। उस स्थान को भैरवनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है। हालांकि वध के बाद भैरवनाथ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने मां क्षमा की भीख माँगी।
दयालु माता ने उन्हें न सिर्फ माफ किया बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।