नर्सिंग होम की आड़ में खेला जा रहा मौत का खूनी खेल

सरकार एक तरफ संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दे रही है, दूसरी ओर अस्पतालों में प्रसव के दौरान प्रसूता की जरूरतों का ध्यान भी नहीं रखा जा रहा है. जिसका उदाहरण महासमुंद के तुमगांव के एक निजी अस्पताल से सामने आया है.

तुमगांव के एक निजी अस्पताल में जहां बावनकेरा निवासी नेतराम ध्रुव ने बड़ी उम्मीद से अपनी पत्नी प्रेमकुमारी को अस्पताल में प्रसव कराने के लिए भर्ती कराया था. यहां अस्पताल प्रबंधन ने प्रसूता को भर्ती किया और फिर प्रसव कराने के लिए ओटी लेकर गए, जहां महिला की प्रसव के दौरान मौत हो गई. हालांकि, महिला की मौत से पहले गर्भ से स्वस्थ बालक को बाहर निकाल लिया गया था. परिजनों को जहां नवजात शिशु मिलने की खुशी थी, वहीं जच्चा की मौत का गम भी सता रहा था.

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प्रसूता की मौत के बाद आनन-फानन में अस्पताल प्रबंधन ने महिला के शव को निजी वाहन से गांव पहुंचा दिया और मामले की सूचना तुमगांव पुलिस को देने का बहाना कर टाल गया. जबकि तुमगांव स्थित अस्पताल में प्रसव के दौरान महिला की मौत होने पर अस्पताल स्टाफ की ओर से तुमगांव थाने को सूचित किया जाना था और प्रकरण दर्ज कराना था लेकिन निजी अस्पताल प्रबंधन ने ऐसा नहीं किया. सवालों के घेरे में घिरने के बाद अस्पताल की संचालिका ने पहले तो परिजनों को पूरे मामले से अवगत कराने की बात कही, लेकिन बाद में महोदया तेवर दिखाते हुए मीडिया को ही समझाने लगीं.

अस्पताल प्रबंधन के इस कोरे झूठ को थाना तुमगांव ने तो पहले ही ठुकरा दिया लेकिन जब नेतराम शव लेकर अपने गांव बावनकेरा पहुंचा तो गांव के बड़े और सरपंचों ने उसे मामले की सूचना पुलिस को देने की सलाह दी. इसके बाद पटेवा थाने में घटना की सूचना दी गई. थाने ने मामले की रिपोर्ट दर्ज करने के बाद तहसीलदार की उपस्थिति में पंचनामा किया गया और फिर महिला के शव को जिला अस्पताल भेजा. पुलिस ने मामला दर्ज कर महिला के मौत की जांच शुरू कर दी.

पूरे मामले देखें तो नर्सिंग होम के कार्य प्रणाली पर कई सवाल खड़े होते हैं. संस्थागत प्रसव के दौरान तुमगांव के निजी अस्पताल में महिला की मौत के इस मामले को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं भी हो रही है. महिला की मौत के पीछे एक बड़ा कारण अधिक रक्त का बहना भी है. जिसके लिए नर्सिंग होम के पास कोई सुविधा नहीं थी.

गौरतलब है कि इसी नर्सिंग होम की जांच करने के बाद बीएमओ डॉ. विपिन राय ने इसे सील किया था, जिसे विभागीय रूप से नहीं बल्कि स्वास्थ्य विभाग के दूसरे अधिकारी ने बतौर गैर सरकारी ढंग से रातोरात खोल दिया और जांच के नाम पर कार्रवाई ठंडे बस्ते में डाल दी. बताया जाता है कि इस नर्सिंग होम का लाइसेंस तुमगांव के नाम पर नहीं बल्कि अभनपुर के नाम पर है. इन सब के बावजूद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अलग ही नसीहत दे रहे हैं.

यह कोई पहला मामला नहीं है बल्कि ऐसे कई मामले हैं जो जिले में संचालित ऐसे कई निजी अस्पतालों में सामने आते हैं जिसे बिना जांच के ही दबा दिया जाता है और कार्रवाई के नाम पर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. इसके पीछे बड़ा कारण यह भी होता है कि सरकारी अस्पतालों में सेवा देने वाले सर्जन ड्यूटी के बाद इन्हीं अस्पतालों में सेवा देते हैं. इस मामले में भी जिला अस्पताल के जिस डॉ सिन्हा ने महिला का पीएम जांच के लिए किया है, असल में वो डॉक्टर भी पार्ट टाइम में इसी निजी नर्सिंग होम में अपनी सेवा देता है. इससे महिला का पीएम भी संदेह के घेरे में है.

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