जब पानी की बात होती है तो इंसान को लगता है कि जल भरपूर मात्रा में उपलब्ध है और इस वजह से वो उस पानी को बर्बाद करने लगता है. पर सच तो ये है कि पीने योग्य पानी बेहद कम है क्योंकि समुद्र और महासागरों में मौजूद पानी पूरी तरह खारा है. पर उससे भी पहले सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर धरती पर पानी आया (How water form on Earth) कहां से, और इसमें से कितना फीसदी पीने योग्य (How much water is drinkable on Earth) है. बाकी समुद्री जल नमकीन क्यों होता है? (Why sea water is salty) आपने मन में भी ये सारे सवाल आते होंगे, जिनके जवाब हम आपको देने जा रहे हैं.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कोरा पर अक्सर लोग अपनी जिज्ञासाओं को दूर करने के लिए सवाल पूछते हैं जिनके जवाब कम लोगों को ही पता होते हैं. पानी से जुड़े कुछ सवाल लोगों ने इसपर पूछे हैं. न्यूज18 हिन्दी की सीरीज अजब-गजब नॉलेज के तहत हमने तय किया कि आपको इन सारे सवालों के जवाब देंगे. पर उससे पहले जान लीजिए कि लोगों ने इनके क्या उत्तर दिए हैं.
कोरा पर लोगों ने दिए जवाब
देवेंद्र कुमार नाम के यूजर ने कहा- “वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हमारी आकाशगंगा में कई क्षुद्र ग्रह ऐसे होते हैं जिनमें काफी ज्यादा पानी है. यही पानी ग्रहों पर पानी की आपूर्ति करता है जीवन को आगे बढ़ाता है. ब्रिटेन की वॉरिक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता रोबर्तो राडी कहते हैं, ‘हमारे शोध से पता चला है कि जिस तरह के ज्यादा पानी वाले क्षुद्र ग्रह की बात हो रही है, वैसे शुद्र गृह हमारे सौर मंडल में काफी ज्यादा संख्या में पाए जाते हैं.’ काफी पहले पृथ्वी बहुत सूखा और बंजर इलाका रहा होगा. इसकी टक्कर किसी ज्यादा पानी वाले क्षुद्र ग्रह से हुई होगी और इसके बाद उस ग्रह का पानी पृथ्वी पर आया होगा.”
नमकीन पानी वाले सवाल पर एक यूजर ने लिखा- “जब बरसात होती है तो बरसात का पानी हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसों के संपर्क में आ जाता है ये गैसे पानी में घुल जाती हैं. इसके कारण बरसात का पानी हल्का सा अम्लीय यानी नमकीन हो जाता है जब यह जल जमीन, पहाड़ो और चट्टानों पर गिरता है तो वह उनमे मौजूद लवण को घुला लेता है सतह से बहकर जब यह पानी नदियों में पहुंचता है तो सतह से बहकर यह लवण नदियों में भी आ जाता है लेकिन यह लवण (नमक) इतने कम होते है कि हमको नदियों का पानी मीठा ही लगता है.”
पीने योग्य पानी के सवाल पर एक यूजर ने कहा- “पृथ्वी पर 97% जल सागर और महासागरों में है जो की नमकीन या खारा है. बचा 3% जो पीने योग्य है. इसमें से 0.6 पीने वाला है और बाकी का बचा 2.4% बर्फ के रूप में ग्लेशियरों पर जमा हुआ है.”
क्या कहता है विज्ञान?
ये तो आम लोगों के जवाब हो गए, चलिए आपको अब फटाफट बता देते हैं कि विश्वस्नीय सोर्सेज का क्या कहना है इन सारे सवालों पर. पॉपुलर मेकैनिक्स के अनुसार करोड़ों सालों पहले जब धरती का निर्माण हो रहा था, तब अरबों उल्कापिंड धरती पर गिरे थे जिसमें पानी की बूंदें मौजूद थीं. इतने ज्यादा उल्कापिंडों की बरसात हुई कि वो सारा पानी धरती पर जमा हो गया और उसे ठंडा करता गया. अमेरिका के नेशनल ओशनिक और एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार जब बारिश होती है तो पानी समुद्र के पास मौजूद पत्थरों पर गिरता है और उससे मिलकर जब वो बहता है तो समुद्र में आ जाता है. दूसरा कारण है कि सी फ्लोर में ओपनिंग की वजह से भी पानी नमकीन हो जाता है. पीने योग्य पानी की बात करें तो धरती 71 फीसदी पानी से बनी है जिसमें से 96.5 फीसदी नमकीन पानी है. सिर्फ 3.5 फीसदी पानी ताजा है जिसे पिया जा सकता है. इस ताजे पानी में से 68 फीसदी पानी बर्फ यानी ग्लेशियर में फंसा है. नदी, तालाब, ग्राउंड वॉटर और वॉटर वेपर के फॉर्म में पीने वाला पानी मौजूद है.