जीवन दर्शन एक गाँव में रसीले आम का पेड़ था । लेकिन बच्चे थे कि हर बार आम पकने से पहले ही उन्हें तोड़ कर खा लेते थे । एक दिन आम का पेड़ उदास था । हवा ने उससे पूछा – ‘क्यों भाई । क्या बात है ?’ आम के पेड़ ने कहा – ‘हवा बहिन । क्या बताऊँ ? काश । मैं किसी घने जंगल में उगा होता । आबादी के पास हम फलदार वृक्षों का होना ही बेकार है। मुझे देखो । मैंने अब तक अपनी काया में पके हुए फल नहीं देखे । ये इन्सानों के बच्चे फलों के पकने का भी इंतज़ार नहीं करते । देखो न । गाँव के बच्चों ने मुझ पर चढ़-चढ़ कर मेरे अंगों का क्या हाल बना दिया है। कई टहनियों और पत्तों को तोड़ डाला है । फल तो ये पकने ही नहीं देते । हवा मुस्कराई । फिर पेड से बोली – ‘पेड़ भाई । दूर के ढोल सुहावने होते हैं । घने जंगल में फलदार वृक्ष तो तुमसे भी ज्यादा दुखी हैं । ‘मुझसे ज़्यादा दुखी है ! क्या बात कर रही हो ? पेड़ ने चौंकते हुए पूछा । ‘और नहीं तो क्या ।
जंगल के फलदार पेड़ अपने ही शरीर के फलों से परेशान रहते हैं । पेड़ों में फल बड़ी सख्या में लगते हैं। वहां फलों को खाने वाला तो दूर तोडऩे वाला भी नहीं होता । पक्षी कितने फल खा पाते हैं । फल पेड़ पर ही पकते हैं । पेड़ बेचारे अपने ही फलों का वजन नहीं संभाल पाते । अक्सर फलों के बोझ से पेड़ों की कई टहनियां और शाख टूट जाती हैं । पके फलों का बोझ सहते-सहते पेड़ का सारा बदन दुखता रहता है । जब फल पक कर गिर जाते हैं, तभी जंगल के पेड़ों को राहत मिलती है । यही नहीं ढेर सारे पके हुए फल पेड़ के इर्दगिर्द गिरकर ही सड़ते रहते हैं ।
पेड़ बेचारे अपने ही फलों की सड़ांध में चुपचाप खड़े रहते हैं । हवा ने बताया ‘अच्छा ! बहिन । फिर तो मैं ऐसे ही ठीक हूँ । मेरे फल इतने मीठे हैं, तभी तो बच्चे उनका पकने का इंतजार तक नहीं करते । याद आया । पतझड़ के मौसम में बच्चे मेरे पास भी फटकते नहीं हैं । उन दिनों मैं परेशान हो जाता हूँ । एक-एक दिन काटे नहीं कटता । तब मैं सोचता तो हूं कि आखिर वसंत कब आएगा । रही बात मेरी टहनियों और पत्तों की तो वसंत आते ही मेरे कोमल अंग उग आते हैं । आम के पेड़ ने हवा से कहा । हवा मुस्कराते हुए आगे बढ़ गई ।