ओपन एक्यू द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर के तमाम बड़े शहर जहरीली हवा में सांसें ले रहे हैं। 50 शहरों में किए गए अध्ययनों में सामने आया है कि दुनिया के 33 बड़े शहरों में वायु प्रदूषण में पीएम 2.5 का स्तर चार गुना अधिक है। वहीं, दुनिया का 90 फीसदी हिस्सा खराब हवा में सांस ले रहा है। उनमें से आधे के पास एयर क्वालिटी डाटा की सुविधा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दिल्ली सबसे अधिक प्रदूषित शहर है। दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर 102 दर्ज किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, 50 शहरों के अध्ययन वाली इस सूची में भारत के सात शहर शामिल हैं। इनमें दिल्ली (102), मुंबई (43.4), कोलकाता (52.1), बैंगलुरू (27.1), चेन्नई (34.3), हैदराबाद (38.2) और अहमदाबाद (56.7) शुमार हैं। एशिया में सबसे अधिक खराब स्थिति लाहौर की थी। लाहौर में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 123.9 था। वहीं, बांग्लादेश के ढाका में यह 86.5 था। अध्ययन में सुझाया गया है कि कम कीमत के सेंसर का इस्तेमाल कर मॉनीटरिंग को बेहतर किया जा सकता है। इससे सरकारों और शोधकर्ताओं को प्रदूषण का हल तलाशने में मदद मिलेगी। रिपोर्ट में सबसे कम प्रदूषण न्यूयॉर्क और शिकागो जैसे शहरों में देखने को मिला। यहां क्रमश: पीएम 2.5 का स्तर 7.7 और दस था।
आईआईटी ने दिया सेंसर बढ़ाने का सुझाव
आईआईटी कानपुर ने एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें दिल्ली के प्रदूषण को मापने वाले सेंसर को बढ़ाने के सुझाव दिए गए हैं। इस रिपोर्ट को नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के सदस्य और कानपुर आईआईटी के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी और कानपुर आईआईटी के निदेशक अभय कारंदिकर ने तैयार किया था। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा था कि नजफगढ़ क्षेत्र में पराली जलने की घटनाएं होती हैं। वहां पर तीस किलोमीटर में एक मॉनीटरिंग स्टेशन है। वहीं धौलाकुआं में हैवी ट्रैफिक होता है, वहां से आठ किलोमीटर की दूरी पर आर के पुरम में एक मॉनीटरिंग स्टेशन है। उन्होंने कहा कि दिल्ली जैसे शहर में अभी 36 मॉनीटरिंग स्टेशन है, जबकि यहां पर 200-300 एयर क्वालिटी सेंसर होने चाहिए। बीजिंग और लंदन जैसे शहरों में सैकड़ों की तादाद में मॉनीटरिंग स्टेशन हैं, जिनसे वहां हवा की गुणवत्ता का सही मापन संभव है।
पार्टिकुलेट मैटर
पार्टिकुलेट मैटर या कण प्रदूषण वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं, जो बहुत खतरनाक होते हैं। पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकारों के होते हैं और यह मानवीय और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण हो सकता है। स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी हो सकते हैं। प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं। प्रदूषण का सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकता है। ये कण हवा में मिश्रित हो जाते हैं और इसको प्रदूषित करते हैं। इनके अलावा, जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि और स्रोत हैं। ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं, जिनसे खांसी और अस्थमा के दौरे पढ़ सकते हैं। उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक समेत और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है।