दिल्ली सरकार के निर्देशानुसार एमसीडी अब ऐसी कार्ययोजना तैयार कर रही है जिसमें राजधानी के हर बड़े और प्रमुख पार्कों में स्थायी ग्रीन वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाएगी। ऐसे पार्कों की संख्या करीब पांच सौ हजार बताई जा रही है।
एमसीडी अब शहर के पार्कों से निकलने वाले गीले और हरे कचरे (ग्रीन वेस्ट) के निपटान को लेकर ज्यादा संगठित और पर्यावरण-अनुकूल व्यवस्था लागू करने जा रही है। इस दिशा में दिल्ली सरकार ने एमसीडी को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वह एक व्यापक कार्ययोजना तैयार करे जिसके तहत बड़े पार्कों में ग्रीन वेस्ट प्रोसेसिंग संयंत्र लगाए जाएं।
यह निर्णय हाल ही में एमसीडी के अधिकारियों और नेताओं के साथ हुई उच्चस्तरीय बैठक में लिया गया। हालांकि एमसीडी ने पहले ही इस संबंध में पायलट स्तर पर ऐसे संयंत्रों के माध्यम से खाद उत्पादन शुरू कर रखा है।
एमसीडी के 15 हजार से अधिक पार्क हैं। इनमें एक हजार से अधिक पार्क एक एकड़ अधिक भूमि पर बने हुए हैं। एमसीडी ने सिटी एसपी जोन में 26 वेल्ड मेश जालियों से 18.30 मीट्रिक टन खाद का उत्पादन किया है। वहीं रोहिणी जोन में चार वर्मी बेड्स से 1.39 मीट्रिक टन खाद तैयार की गई है। सिटी एसपी जोन में 19 खाद गड्ढों से 4.60 मीट्रिक टन खाद बनाई गई है। एमसीडी ने इस बारे में गत दिनों मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ हुई बैठक में जानकारी दी थी। इस दौरान मुख्यमंत्री ने इस योजना का अपनाने पर जोर दिया।
दिल्ली सरकार के निर्देशानुसार एमसीडी अब ऐसी कार्ययोजना तैयार कर रही है जिसमें राजधानी के हर बड़े और प्रमुख पार्कों में स्थायी ग्रीन वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाएगी। ऐसे पार्कों की संख्या करीब पांच सौ हजार बताई जा रही है। इस योजना का उद्देश्य स्थानीय स्तर पर ही कचरे का निपटान और खाद का उत्पादन करना है जिससे लॉजिस्टिक लागत भी घटेगी और पर्यावरणीय प्रभाव भी सकारात्मक होगा। स्थायी समिति की अध्यक्ष सत्या शर्मा ने बताया कि हम अब तक सीमित संसाधनों से खाद तैयार कर रहे थे लेकिन अब सरकार के निर्देश के अनुसार हर बड़े पार्क में संयंत्र लगाने की कार्य योजना बनाई जा रही है।
उन्होंने बताया कि एमसीडी की यह पहल एक साथ दो उद्देश्यों को पूरा ककेगी। एक ओर गीले कचरे के वैज्ञानिक और स्थानीय निपटान की व्यवस्था होगी और खुद के पार्कों के लिए खुद की खाद का उत्पादन होगा। इसके अलावा यह मॉडल न केवल दिल्ली को साफ-सुथरा बनाने की दिशा में सहायक है, बल्कि यह पर्यावरणीय जागरूकता और संसाधनों के पुनः उपयोग की भावना को भी मजबूत को होगा।