इन दिनों फिल्मों के लेखकों और गीतकारों को प्रमुखता देने की भावना जोर पकड़ रही है। पोस्टर पर भी उनके नाम दिए जा रहे हैं। आवश्यक और स्वाभाविक क्रेडिट का भी श्रेय लेने की कोशिश की जा रही है। किसी भी फिल्म की शुरुआत लेखक के शब्दों से होती है और गीतकार गीतों से उसे सजाता है। पैसों और महत्व के हिसाब से लेखकों और गीतकारों का सम्मान और आदर बढ़े तो यह अच्छी बात होगी। पुराने और नए समय की फिल्म इंडस्ट्री में एक फ़र्क तो साफ दिखाई पड़ता है।
लेखकों और गीतकारों को सम्मान व महत्व दिए जाने की ज़रूरत के बावजूद निर्माता-निर्देशक और लेखक-गीतकार के रिश्तो में पहले जैसी आत्मीयता नहीं दिखाई पड़ती। इस संदर्भ में अनायास ही शैलेन्द्र और राज कपूर अंतरंगता और आत्मीयता याद आती है। आज शैलेन्द्र का जन्मदिन ( 30 अगस्त 1923) भी है। तस्वीरों और वीडियो में दोनों के नजदीकी और परस्पर मोहब्बत देखी जा सकती है। मिलने पर राज कपूर और शैलेन्द्र गले मिलने, कंधे पर हाथ रखने और बालों को सहलाने मैं नहीं हिचकते थ। अभी ऐसी अंतरंगता और बैठकी नहीं दिखाई पड़ती।