क़ुरान में परदे को को खास स्थान दिया गया है। पराई स्त्री और पराये धन की तरफ नज़र जाने को भी इस्लाम में पाप समझा जाता है। अदब को क़ुरान में बेहद जरूरी बताया गया है। मुस्लिम धर्म में किसी स्त्री को बिना सिर पर परदे के नहीं रहना होता है।
कैसे हुई परदे की चलन:
मुस्लिम पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहेब के परिवार में स्त्रियों का रहन-सहन और स्वभाव ऐसा था कि उनके पूरे जीवन में कभी भी किसी ने उनकी परछाई तक नहीं देखीं। उनका यह आचरण, धीमी और आदर से भरपूर आवाज़ के साथ बेहतरीन सलीके के लिए पूरे मक्का में प्रसिद्द था।
वहीं से मुस्लिम समाज में परदे को अदब जताने का सलीका मानते हुए अपनाया गया।