सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर सुनवाई जारी है. AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है.
इससे पूर्व सोमवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि विवाद सिर्फ तीन तलाक के मुद्दे को लेकर नहीं है, बल्कि समुदायों के बीच पुरुष प्रधानता की व्यापक मौजूदगी भी है. बोर्ड ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि सभी पुरुष प्रधान समाज भेदभाव करते हैं. उसके वकील कपिल सिब्बल ने पीठ से यह भी कहा कि पर्सनल लॉ और परंपरा एवं प्रथा में अंतर होता है|
सिब्बल ने कहा, सभी पुरुष प्रधान समाज पक्षपाती हैं. हिंदू धर्म में पिता अपनी संपत्ति किसी को भी वसीयत कर सकता है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में ऐसा नहीं है. मैं हिंदू समाज में ऐसी कई परंपराओं की ओर इंगित कर सकता हूं. क्या यह सही है कि कोई महिला तलाक के लिए आवेदन करे और 16 साल तक संघर्ष करे और उसे कुछ हासिल नहीं हो. उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में बहुविवाह की प्रथा है, लेकिन इसे सुरक्षा हासिल है क्योंकि यह परंपरा है और सिर्फ समाज यह फैसला करेगा कि इसे कब बदला जाएगा. पर्सनल लॉ बोर्ड की दलीलें पेश करना अभी पूरा नहीं हुआ और ये कल जारी रहेंगी.