मल्टी ड्रग रजिस्टेंस ट्यूबरकुलोसिस (एमडीआर) के इलाज का ढर्रा बदलेगा। जल्द ही वर्षों से चली आ रही टैबलेट और इंजेक्शन की डोज बदलने वाली है। अब मरीजों को सुई की चुभन से छुट्टी मिलेगी। वह दवा खाकर ही बीमारी को मात दे सकेंगे। सूबे में मार्च से इलाज का नया पैटर्न लागू होगा।
राज्य के क्षय नियंत्रण कार्यक्रम अधिकारी डॉ. संतोष कुमार के मुताबिक, देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य तय है। ऐसे में नए मरीजों की खोज के साथ-साथ उनके संर्पूण इलाज पर ध्यान दिया जा रहा है। इसी कड़ी में अब एमडीआर टीबी मरीजों को इंजेक्शन लगाने के डॉक्टरों के पास भागदौड़ नहीं करनी होगी। वह घर पर ही दवा ले सकेंगे। यूपी में मरीजों को इंजेक्शन की डोज से छुटकारा दिलाने का फैसला कर लिया गया है। इलाज का यह नया पैटर्न विभिन्न राज्यों ने शुरू कर दिया है।
पूरे राज्य में ओरल डोज ट्रीटमेंट
डॉ. संतोष कुमार के मुताबिक, एमडीआर टीबी मरीजों को अभी छह से सात दवाएं चलती हैं। इसमें केनामाइसिन, कैप्रियोमाइसिन इंजेक्शन भी शामिल हैं। टैबलेट, इंजेक्शन की कंबाइन डोज मरीजों के वजन व बीमारी के प्रकोप के हिसाब से नौ माह से दो वर्ष तक दी जाती है। इसमें कई बार इंजेक्शन की डोज लेने से मरीज कतरा जाते हैं। ऐसे में ट्रीटमेंट ब्रेक होने का खतरा रहता है। लिहाजा, इंजेक्शन से छुटकारा दिलाने का प्लान तैयार कर लिया गया। इंजेक्शन की दवा टैबलेट में बदल दी गई है। डॉक्टर, स्टाफ को ट्रेनिंग देकर मार्च से कुछ जनपदों से प्रोजेक्ट की शुरुआत की जाएगी। अप्रैल में राज्य भर के डीआरटीबी सेंटर पर ओरल डोज मिलने लगेगी।
टीबी के लक्षण
- दो सप्ताह से अधिक खांसी
- बलगम के साथ खून आना
- भूख कम लगना
- बुखार का लगातार उतार-चढ़ाव बना रहना
- सांस फूलना आदि।
प्रदेश में टीबी का ग्राफ
- चार लाख 80 हजार, 200 टीबी के मरीज
- 15 हजार के लगभग राज्य में एमडीआर टीबी के मरीज
- 56 डीआरटीबी सेंटर व 21 नोडल डीआरटीबी सेंटर पर मिलेगी दवा