सैकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद भी चाणक्य नीति की उपयोगिता कम नहीं हुई है. चाणक्य ने समाज को प्रभावित करने वाले हर पहलु के साथ साथ उन सभी रिश्तों का भी सूक्ष्मता से विश्लेषण किया है जो व्यक्ति के संपूर्ण जीवन को प्रभावित करते हैं.
व्यक्ति के जीवन में मित्रों की बड़ी भूमिका होती है. रिश्ते व्यक्ति को जन्म के साथ ही प्राप्त होते हैं लेकिन मित्र व्यक्ति स्वयं बनाता है. मित्र कैसा होना चाहिए या फिर सच्चा मित्र कौन है. इस पर चाणक्य की चाणक्य नीति बहुत ही गंभीरता से प्रकाश डालती है. आइए जानते हैं आज की चाणक्य नीति…
आचार्य चाणक्य के अनुसार मित्रता बहुत सोच समझ कर करनी चाहिए. गले मिलकर अभिभादन करने वाला हर व्यक्ति मित्र नहीं होता है. जो मित्र मुंह के सामने तो तारीफ करे और पीठ पीछे बुराई करे ऐसा मित्र सच्चा नहीं होता है.
आचार्य चाणक्य की दृष्टि में ऐसा मित्र सर्प के समान होता है. ठीक वैसे ही जैसे सर्प के विष से भरे घड़े में यदि थोड़ा दूध मिला दिया जाए तो वह दूध का घड़ा नहीं हो सकता है.
सामने होने पर प्रसन्न करने वाली बातें बोले और पीठ पीछे काम बिगाड़े ऐसे मित्र को जितनी जल्दी हो सके त्याग देना चाहिए. चाणक्य के अनुसार ऐसे व्यक्ति को मित्र की श्रेणी में नहीं रखना चाहिए ऐसे लोगों को शत्रु और दुष्ट समझना चाहिए.
दुष्ट और चुगलखोर व्यक्ति को कभी मित्र नहीं बनाना चाहिए. ऐसे मित्र समय आने पर धोखा देने से नहीं चूकते हैं. जो मित्र दूसरे लोगों को आपकी गुप्त बातों को बताएं और उस पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए.
ऐसे मित्र अवसरवादी होते हैं. ये विश्वास के योग्य नहीं होते हैं. ऐसे मित्रों को कभी भी अपनी योजनाओं में शामिल नहीं करना चाहिए. ऐसे मित्रों से सदैव सावधान रहना चाहिए और जितनी जल्दी हो इनसे दूरी बना लेनी चाहिए.
क्योंकि ऐसे मित्र अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं. समय आने पर आपके भेद भी खोलने की धमकी दे सकते हैं. ऐसे व्यक्ति मित्र नहीं होते हैं. इसलिए मित्रता करते समय बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए. सोच समझकर ही मित्र बनाने चाहिए.