जोबनेर की ज्वाला माता, यहां भक्तों का पाग बांध सम्मान करता है राजपरिवार

एजेन्सी/jwala-mata-57068878e5bd5_lजोबनेर.

कस्बे की पहाड़ी पर स्थित ज्वाला माता के नाम की महिमा अपार है। कहा जाता है कि सच्चे मन से मन्नत मांगने वाला कोई भी भक्त यहां से निराश नहीं जाता। यहां हर साल चैत्र माह में भरने वाला मशहूर लक्खी मेला शुरू हो चुका है। शुक्रवार से नवरात्र भी शुरू हो रहे हैं, ऐसे में कस्बे में चहुंओर श्रद्धालुओं का सैलाब नजर आ रहा है

दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं श्रद्धालु

मेले के दौरान भारत के लगभग सभी राज्यों के श्रद्वालु माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 2 लाख यात्री मेले के दौरान मां के दर्शन के लिए आते हैं। यहां पर भक्तगण मनौती के रूप में बच्चों का मुण्डन संस्कार माता के मन्दिर में सम्पन्न कराते हैं।

माता ने सपने में आकर राजा को दिया था आदेश

मन्दिर की स्थापना चौहान काल में वर्ष 1286 में हुई। जगमाल पुत्र खंगार जोबनेर के वीर शासक थे। उन्हीं राव खंगार को ज्वाला माता ने सपने में आकर बडा मण्डप बनाने व मेला भराने का आदेश दिया।

मां के चरणों में मस्तक पेश कर दिया था धाना भगत ने

माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालु धाना भगत के दर्शन करना नहीं भूलते। स्थानीय मान्यता के अनुसार वर्षों पूर्व यातायात के साधनों के अभाव में यात्री विशाल संघ बनाकर जोबनेर पैदल आते थे। रास्ते में कालख का ठाकुर इन यात्रियों को जागरण करने के लिये जबरन रोक लिया करता था। एक बार ठाकुर ने धाना भगत के आगे बढऩे पर उसे मारने की धमकी दी। इस पर धाना भगत ने स्वयं अपना मस्तक काटकर थाल पर रख लिया और उसका दौड़ता हुआ धड़ ज्वाला माता के चरणों में आ गिरा। इसके बाद राज परिवार की ओर से धाना भगत के कटे हुए मस्त पर पाग बंधाई गई। तब से ही राज परिवार भक्तों का पाग बंधाकर सम्मान करता है।

सबसे पहले लांगुरिया बलबीर

ज्वाला माता मंदिर के नीचे लांगुरिया बलबीर ऊंचे चबूतरे पर विराजमान है। यात्रियों को सर्व प्रथम इन्हीं के दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है।

प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाते हैं झांपडला बाबा

इसके आगे झांपडला बाबा का स्थान है। यह स्थान मन्दिर के पीछे देवी प्रकट होने से फ टी पर्वत की विशालकाय चट्टान के पास है। इसे प्रेत बाबा भी कहते हैं। भूत प्रेत से पीडि़त श्रद्धालु इसके सामने प्रणाम करके कष्ट से मुक्ति पा लेते हैं।

शिवालय

यह झांपडला बाबा के ठीक सामने है इसका निर्माण स्व. रावल नरेन्द्रसिंह ने कराया था।

चलते हैं माता के जगराते-भण्डारे

माता के दर्शन करने आने वाले यात्रियों के भोजन की व्यवस्था के लिए कस्बे में विभिन्न समाजों द्वारा जगह-जगह भण्डारों का आयोजन किया जाता है। ये भण्डारे मेले के दौरान चलते रहते है।

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