तीन दशकों से बिहार की सत्ता और सियासत की धुरी रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव अब रिंग मास्टर की भूमिका में हैं। लोकसभा चुनाव से संबंधित महागठबंधन की सारी रणनीति लालू के इर्दगिर्द ही घूम रही है। चाहे सीटों का बंटवारा हो या प्रत्याशी तय करने का मामला, लालू जेल से ही सारा खेल सेट कर रहे हैं। विवाद भी वहीं से उठता है और समाधान भी वहीं से निकलता है।
अप्रत्यक्ष तौर पर कमान संभाले हैं लालू
प्रत्यक्ष तौर पर राजद के सारे निर्णयों और महागठबंधन के घटक दलों में समन्वय के लिए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को चेहरा बना दिया गया है। किंतु सच्चाई है कि सीटों के मसले पर माथापच्ची और तकरार को देखते हुए लालू ने पार्टी की कमान खुद संभाल ली है। यही कारण है कि प्रत्येक शनिवार को राजधानी पटना से रांची जाने वाले नेताओं के फेरे बढ़ गए हैं। पटना स्थित पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास से ज्यादा रांची स्थित रिम्स अस्पताल के दौरे हो रहे हैं।
हालात बता रहे हैं कि राजद के अधिकांश रणनीतिक फैसले अब रांची से ही लिए जा रहे हैं। महागठबंधन के घटक दलों राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) की हिस्सेदारी से लेकर कांग्रेस की महत्वाकांक्षा पर हावी होने के फॉर्मूले भी लालू ही तय कर रहे हैं।
लालू की सियासी रणनीति ने बिहार में कांग्रेस को परेशान कर रखा है।
कांग्रेस को कमान में करने के लिए लालू ने किया हस्तक्षेप
प्रारंभ में कांग्रेस की ओर से 19 सीटों की हिस्सेदारी मांगी गई थी। तेजस्वी को अहसास था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नरेंद्र मोदी का डर दिखाकर वे कांग्रेस को कम से कम सीटें लेने के लिए राजी कर लेंगे। मगर ऐसा हुआ नहीं। चुनावी सरगर्मी के बीच तेजस्वी को सीट बंटवारे के मुद्दे पर पटना छोड़कर हफ्ते भर दिल्ली दरबार में हाजिरी देनी पड़ी। किंतु राजद की शर्तों पर कांग्रेस ने जब हामी नहीं भरी तो लालू को बीच रास्ते में हस्तक्षेप करना पड़ा।