छत्तीसगढ़ में भी चार से अधिक ‘निर्भया’ के दोषी फांसी से बचे हुए हैं। राज्य की जेलों में एक महिला समेत कुल नौ कैदी ऐसे हैं जिन्हें फांसी की सजा हुई है। इसमें छह, मासूमों के गुनाहगार हैंं। चार पर मासूम बच्चियों से दुष्कर्म के बाद हत्या का आरोप सिद्ध हुआ है। वहीं, एक दंपती अबोध बच्चे की बलि चढ़ाने के दोषी हैं। इसकी फांसी की सजा पर इसी वर्ष अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। इस मामले के साथ ही बाकी प्रकरण भी फिलहाल कानूनी प्रक्रिया में फंसे हुए हैंं। फरवरी 2016 में रायगढ़ के बजरंग पारा में रहने वाली तीन वर्ष की मासूम के साथ घिनौना काम करने के बाद हत्या करने वाले लोचन श्रीवास को कोर्ट ने केवल 22 दिन में फांसी की सजा सुना दी थी। हाईकोर्ट से भी उसकी फांसी की पुष्टि हो चुकी है।
दुष्कर्म और हत्या के बाद जंगल में फेंकी लाश
बलोद कोर्ट ने फरवरी 2019 में झग्गर यादव को 11 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई। घटना जून 2017 की थी। बच्ची की लाश दो दिन बाद जंगल में मिली थी। एक अन्य मामले में दुर्ग कोर्ट ने अगस्त 2018 में पांच साल की मूक-बधिर बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या के आरोपी खुर्सीपार निवासी राम सोना को फांसी की सजा सुनाई थी। घटना 2015 की थी।
रिश्तेदार की चार वर्ष की मासूम की कर दी हत्या
कांकेर में भानुप्रतापपुर कोर्ट ने अक्टूबर 2018 में मदनलाल को फांसी की सजा सुनाई। घटना मार्च 2015 की थी। कोर्ट ने मदनलाल को अपने ही रिश्तेदार की चार वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या दोषी माना था।
मासूम की दी थी बलि, सुप्रीमकोर्ट से भी नहीं मिली राहत
फांसी की सजा पाने वालों में दुर्ग का दंपती ईश्वरलाल यादव और किरण बाई भी शामिल हैं। इन लोगों पर 2011 में तंत्र साधना के लिए दो वर्षीय एक मासूम का अपहरण कर बलि देने का आरोप सिद्ध हुआ है। इस मामले में दुर्ग कोर्ट ने सात लोगों को सजा सुनाई थी। इसमें यादव दंपित्त को फांसी की सजा हुई है। इसी वर्ष अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों की फांसी की सजा को बरकरार रखा है।
लंबी चलती है फांसी की प्रक्रिया
कानून के जानकारों के अनुसार भारत में दुर्लभतम मामलों में मौत की सजा दी जाती है। सत्र न्यायालय में जब मुकदमे की सुनवाई होती है तो जज को फैसले में यह लिखना पड़ता है कि मामले को दुर्लभतम (रेयरेस्ट ऑफ द रेयर) क्यों माना जा रहा है। लेकिन यह मृत्युदंड की सजा तब तक वैध नहीं माना जाता है, जब तक हाईकोर्ट की अपील में मंजूरी न मिल जाए। हाईकोर्ट में दो जज सबूतों को दोबारा देखते हैं।
अपील के लिए खुले हैं कई दरवाजे
फांसी की सजा के खिलाफ दोषी के पास अपील करने के लिए कई दरवाजे खुले रहते हैं। सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी अपील किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में भी फांसी की पुष्टि होने पर राज्यपाल या राष्ट्रपति से मृत्युदंड माफ करने की अर्जी दी जा सकती है। जब तक इस अर्जी पर फैसला न आ जाए दोषी को फांसी पर नहीं लटकाई जा सकती है।