कोरोना महामारी का यह दौर सतर्कता बरतने का है। भारत सहित वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में मामले आ रहे हैं। ऐसे में हमें इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। वैक्सीन के आने तक तमाम सावधानियां बरतनी चाहिए। माना जा रहा है कि जल्द ही कोविड-19 की वैक्सीन आ जाएगी। हालांकि सवाल यह है कि वैक्सीन सबसे पहले किसे मिलेगी? इस सवाल का जवाब तय करने के लिए 19 वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने त्रिस्तरीय फेयर प्रायोरिटी मॉडल पेश किया है। जिसका उद्देश्य कोविड-19 से होने वाली असमय मौतों और गंभीर स्वास्थ्य परिस्थितियों को कम से कम करना है।
गंभीर परिस्थितियों के आधार पर वितरण : इस शोध के प्रमुख लेखक और अमेरिका की पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय के एजेकेल जे एमानुएल का कहना है कि वैक्सीन का वितरण आबादी के लिहाज से करना न्याय के अनुरूप रणनीति प्रतीत होती है, लेकिन आम तौर पर, हम चीजों को इस आधार पर वितरित करते हैं कि वहां पर स्थितियां कितनी गंभीर हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में हम तर्क देते हैं कि वैक्सीन से पीड़ित के प्राथमिक उपचार का मतलब है कि दुनिया में अनमोल जीवन को बचाया जाए।
पहला चरण तीन बातों पर केंद्रित : एमानुएल ने कहा कि इस प्रस्ताव में तीन मौलिक मूल्यों की ओर संकेत किया गया है, जिन्हें देशों को कोविड-19 वैक्सीन वितरित करते वक्त ध्यान में रखा जाना चाहिए। पहला, लोगों को लाभ हो और कम से कम नुकसान हो, दूसरा वंचितों को प्राथमिकता देना और तीसरा सभी लोगों के लिए समान रूप से चिंतित होना। साथ ही यह मॉडल तीन प्रकार के आयामों पर ध्यान केंद्रित करता है। पहला, कोविड-19 के कारण मौत और स्थायी अंगों को क्षति, अप्रत्यक्ष स्वास्थ्य समस्याएं जैसे स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर अधिक भार और तनाव, तीसरा र्आिथक विनाश। इन सभी का सबसे बड़ा लक्ष्य कोविड-19 से होने वाली मौतों को रोकना है। पहले चरण में इसी पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
आर्थिक सुधारों की भी जरूरत : इसके दूसरे चरण में लेखकों ने दो आयामों पर ध्यान केंद्रित किया है। इनमें से एक में आर्थिक सुधार और दूसरे में लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की बात है। तीसरे चरण में महामारी के उच्च प्रसार वाले देशों को शुरुआत में प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन सभी देशों को कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए पर्याप्त वैक्सीन प्राप्त करने की दरकार होगी। अनुमान है कि 60 से 70 फीसद आबादी को इम्यून होना पड़ेगा।
प्राथमिकता को लेकर आपत्ति : लेखकों ने उस योजना पर भी आपत्ति जताई है, जो स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या, 65 साल से अधिक आबादी के अनुपात और प्रत्येक देश में रोगियों की संख्या के आधार पर प्राथमिकता देगी। उन्होंने कहा कि सुविधा प्राप्त स्वास्थ्यकर्मी पहले से ही पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) और संक्रमण से बचाव के लिए आसानी से विभिन्न विधियों तक पहुंच रखते है। लेखकों का कहना है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में उच्च आय वाले देशों की तुलना में कम आयु के निवासी और स्वास्थ्यकर्मी हैं।
नैतिक मूल्यों की अभिव्यक्ति : लेखकों का निष्कर्ष है कि यह मॉडल हानि को सीमित करने, वंचितों को लाभ पहुंचाने और सभी लोगों के लिए समान चिंता को पहचानने के नैतिक मूल्यों को सबसे अच्छी तरह से अभिव्यक्त करता है।