डायबिटीज़ एक आम बीमारी बन गई है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपना शिकार बना सकती है। दो तरह की डायबिटीज़ आम है, जिसमें टाइप-1 और टाइप-2 शामिल है। टाइप-1 डायबिटीज़ को जुवेनाइल डायबिटीज़ भी कहा जाता है, जो आमतौर पर बच्चों में देखी जाती है। इस स्थिति में, पैंक्रियाज़ बहुत कम या बिल्कुल भी इंसुलिन नहीं बना पाता है।
टाइप-1 डायबिटीज़ का पता कैसे चलता है?
बच्चों में डायबिटीज़ जन्म के बाद से कभी भी हो सकती है। जो बच्चे इससे प्रभावित होते हैं, उनमें ज़रूर से ज़्यादा पेशाब आना, रात में बिस्तर में पेशाब हो जाना, ज़्यादा प्यास लगना, भूख न लगना, वज़न कम होना, मतली, उल्टी और पेट दर्द जैसी दिक्कतें दिखती हैं। इसके अलावा बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज़ या फिर नियोनेटल डायबिटीज़ भी देखी जाती है। नियोनेटल डायबिटीज़ जन्म से एक साल तक रहती है।
डायबिटीज़ को कंट्रोल करने के लिए एक संतुलित और पोषण से भरपूर डाइट बेहद ज़रूरी होती है। इसके लिए ज़्यादा से ज़्यादा सब्ज़ियां, फल, अनाज और प्रोटीन को डाइट में ज़रूर शामिल करें। वहीं, चीनी और रिफाइन्ड कार्ब्स से दूरी बनाएं। डायबिटीज़ के बेहतर कंट्रोल के लिए एक्सरसाइज़ भी काफी मददगार साबित होती है। साथ ही नियमित तौर पर डॉक्टर से चेकअप भी कराएं। रुटीन में इन चीज़ों का पालन करने से शरीर में शुगर का स्तर बना रहेगा और जटिलताओं से बचेंगे।
डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों की देखभाल कैसे करें?
कम उम्र में ऐसी क्रॉनिक बीमारी के साथ जीना न सिर्फ बच्चों के लिए बल्कि मां-बाप के लिए भी मुश्किल होता है। मां-बाप या फिर देखभाल करने वाले लोग मानसिक तनाव से गुज़रते हैं, साथ ही बच्चा भी जो एक आम बचपन नहीं जी पाता है। स्कूल प्रशासन को भी इस बारे में पता होना चाहिए, ताकि दिन में इंसुलिन की डोज़ दी जा