भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए कालभैरव की पूजा का विशेष दिन होता है कालाष्टमी। इस दिन पूरे श्रृद्धाभाव से पूजन और व्रत करने से इंसान के जीवन में सुख-संपदा बनी रहती है। इसे भैरवाष्टमी आदि नामों से भी जाना जाता है। आज यानी 27 जनवरी को कालाष्टमी है।

जानें क्यों रखा जाता है व्रत
कथा के अनुसार एक दिन भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठ होने का विवाद उत्पन्न हुआ। विवाद के समाधान के लिए सभी देवता और मुनि शिव जी के पास पहुंचे। सभी देवताओं और मुनि की सहमति से शिव जी को श्रेष्ठ माना गया। परंतु ब्रह्मा जी इससे सहमत नहीं हुए। ब्रह्मा जी, शिव जी का अपमान करने लगे।
अपमान जनक बातें सुनकर शिव जी को क्रोध आ गया जिससे कालभैरव का जन्म हुआ। उसी दिन से कालाष्टमी का पर्व शिव के रुद्र अवतार कालभैरव के जन्म दिन के रूप में मनाया जाने लगा।
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कालाष्टमी व्रत विधि
नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को अर्ध रात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रिकी पूजा का विधान है।
इस दिन शक्ति अनुसार रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन करना चाहिए। आज के दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए। कालभैरो की सवारी कुत्ता है अतः इस दिन कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है।
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