84 वर्षीय प्रणब मुखर्जी को चलती-फिरती एनसाइक्लोपीडिया, कांग्रेस का इतिहासकार, संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ और संसद के कायदे-कानूनों का पालन करने वाले नेता के तौर पर जाना गया। ऐसे में प्रणब दा का जाना भारतीय राजनीति रिक्तता का इतना बड़ा शून्य छोड़ गया जो शायद ही कभी छोटा हो पाए। आइये जानते हैं उनके व्यक्तित्व के बारे में
प्रणब मुखर्जी और सोमनाथ चटर्जी का विरोधाभासी चरित्र
1985 से ही सोमनाथ चटर्जी बोलपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे। 1980 में प्रणब मुखर्जी इसी निर्वाचन क्षेत्र से 62 हजार मतों से हार गए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी बोलपुर से दिल्ली जाकर सोमनाथ से मिलता था तो वह बेहद गर्मजोशी से उसका स्वागत करते थे। वह उनके रहने, घूमने और खाने-पीने का इंतजाम करते थे। लेकिन, प्रणब इस तरह के व्यक्ति कभी नहीं रहे। वह अपने मिलने वालों से केवल चाय तक का ही व्यवहार रखते थे। माना जाता है कि सत्ता के गलियारों में प्रणब को उनके व्यवहार के बजाय बौद्धिकता के कारण जाना गया। पिछले चार दशक में उन्होंने चार बार चुनाव लड़ा, जिनमें से उनको दो बार हार का मुंह देखना पड़ा।
जब बने बंधक
1988 में प्रणब अपनी कार से पुष्कर गए थे। लौटते समय उनकी कार एक गांव के निकट एक साइकिल सवार से टकरा गई। सवार गांव के मुखिया का बेटा निकला और स्थानीय लोगों ने प्रणब को घेर लिया। प्रणब अपनी भाषागत समस्या के चलते ग्रामीणों को समझा नहीं पा रहे थे कि इस वक्त सवार को सबसे पहले अस्पताल ले जाने की जरूरत है। बड़ी देर बाद वह लोगों को अपनी बात समझा सके लेकि न प्रणब को गांव वालों ने घटनास्थल से हटने नहीं दिया। उनको वहीं चारपाई पर बैठा दिया गया और उनका ड्राइवर कार में घायल सवार को लेकर निकटवर्ती अस्पताल गया। कुछ समय बाद प्रणब लोगों को लेकर अस्पताल पहुंचे। घायल व्यक्ति का हाल-चाल पूछा। उसको इलाज का खर्च उठाया और नई साइकिल के पैसे दिए।
दीदी से कांटा निकलवा कर ही खाते थे मछली
एक टिपिकल बंगाली के रूप में प्रणब मुखर्जी की पहली पसंद जहां माछ-भात रहा, वहीं वह मिठाई के भी काफी शौकीन थे। उन्हें कोलकाता का प्रसिद्ध रसगुल्ला और बालूशाही काफी पसंद आता था। एक सबसे खास बात यह है कि प्रणब दा यदि अपनी बड़ी बहन(दीदी) अन्नपूर्णा बनर्जी के यहां जाते थे, तो मछली के कांटे अपनी बहन से ही निकलवाने के बाद खाते थे। अगर भोजन दीदी की जगह बहू या फिर भाभी ने बनाया हो, तो कहते भी थे, दीदी जैसा नहीं बना है। मिठाई में रसगुल्ला और बालूशाही हो, तो पोल्टू (बचपन का नाम) बाबू अपने को रोक नहीं पाते।
जिद के चलते मिला दोहरा प्रमोशन
पारिवारिक सदस्यों के मुताबिक प्रणब बचपन से ही जिद्दी स्वभाव के थे। कक्षा दो में उन्होंने मिराती गांव के स्कूल में जाने से मना कर दिया। इसके बजाय उन्होंने किन्नहर स्कूल भेजे जाने की मांग की, लेकिन इस स्कूल में उनको नहीं भेजा जा सकता था, क्योंकि यह पांचवी दर्जे से था। इसलिए कि किन्नहर स्कूल के हेडमास्टर ने प्रणब को पांचवी में दाखिला देने के लिए उनकी योग्यता आंकने के लिए विशेष परीक्षा ली। उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से सभी को चौंकाते हुए वह परीक्षा पास कर ली।