बकरीद इस्लाम धर्म का खास पर्व है. ये कब और क्यों मनाया जाता है इसके बारे में इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरआन में वर्णन किया गया है. एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी. तो आपको बता दें, हज़रत इब्राहिम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था. उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय किया. हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे की बलि लेने के लिए उसकी गर्दन पर वार किया.
कुरआन में बताया जाता है अल्लाह चाकू की वार से हज़रत इब्राहिम के पुत्र को बचाकर एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी. इसी के बाद से बकरीद मनाई जाती है. बकरा ईद, बकरीद, ईद-उल-अजहा या ईद-उल जुहा सभी नाम से जाना जाता है. इसे इस साल 12 अगस्त को मनाया जा रहा है. ईद-उल-ज़ुहा यानि बकरीद हज़रत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. बकरीद के दिन हज़रत इब्राहिम अल्लाह के हुक्म पर अल्लाह के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे हज़रत इस्माइल को कुर्बान कराने के लिए राजी हुए थे. इसी कारण बकरीद मनाई जाती है.
ईद-उल-ज़ुहा (बकरीद) का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज को भी मान्यता देता है. इस दिन इस्लाम धर्म के लोग किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुर्बानी देते हैं. बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए. बकरीद के दिन सभी लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं. मर्दों को मस्जिद व ईदगाह और औरतों को घरों में ही पढ़ने का हुक्म है. नमाज पढ़कर आने के बाद ही कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.