सनातन धर्म में नवरात्रि को बहुत पवित्र पर्व माना जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में वैसे तो सालभर में चार बार नवरात्रि मनाई जाती हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि होती हैं, लेकिन शारदीय नवरात्रि का महत्व सबसे खास होता है। शारदीय नवरात्रि की शुरुआत अश्विन माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक मां आदिशक्ति के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों में माता रानी धरती लोक पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों के कष्टों को हरकर उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। ऐसे मे चलिए जानते हैं इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत कब से हो रही है…
कब से शुरू हो रही है शारदीय नवरात्रि 2023 ?
इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर 2023, रविवार से हो रही है, जो कि 23 अक्टूबर 2023, मंगलवार तक मनाई जाएगी। वहीं 24 अक्टूबर को विजयादशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाएगा।
शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 14 अक्टूबर 2023, शनिवार को रात 11 बजकर 24 मिनट से प्रारंभ हो रही है। यह तिथि 15 अक्टूबर रविवार को देर रात 12 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि को देखते हुए शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर रविवार से शुरू होगी। इसी दिन कलश स्थापना किया भी किया जाएगा।
शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना का मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि के दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को 11 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक है। कलश स्थापना के लिए इस साल केवल 46 मिनट का समय रहेगा। इस मुहुर्त में आप कलश स्थापना कर सकते हैं।
कलश स्थापना विधि
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें।
फिर मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़कें।
इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें। मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें।
साथ ही इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश में चारों ओर आम या अशोक के पत्ते लगाएं और स्वास्तिक बनाएं।
फिर इसमें साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें।
एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए मां जगदंबे का आहवाहन करें।
फिर दीप जलाकर कलश की पूजा करें।