यह ग्रह स्थितियां भूत, प्रेत और पिशाच पीड़ा का योग बनाती हैं – भूत, प्रेत और पिशाच मन तथा अंतर्मन पर नियंत्रण करके मानसिक शारीरिक पीड़ा देते हैं और पूर्णिमा के आसपास आगे पीछे भूत प्रेत बाधा ग्रस्त होने के अधिक अवसर रहते हैं। तो आइये जानते है की किन लोगो को भूत प्रेत और पिशाच देते हैं पीड़ा…..
# छठे स्थान पर राहू शनि की युति प्रेत पिशाच पीड़ा भय।
# सातवें स्थान में शनि पत्नी के प्रेत (चुड़ैल) से पीड़ा। अथवा पत्नी को पति के प्रेत (भूत) से पीड़ा का कारण बनते हैं।
# अशुभ बृहस्पति नवमेश (भाग्येश होकर 8, 12 भाव में स्थित हो)।
# पाप ग्रह कुंडली के अशुभ भावेश होकर केंद्र त्रिकोण में स्थित हो।
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# चंद्रमा निर्बल, क्षीण, अस्त, नीचराशि वृश्चिक में, शत्रु राशि में पापयुत दुष्ट पापग्रह की राशि में होकर 6, 8, 12 भावों में हो।
# लग्न लग्नेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव स्थिति युति दृष्टि और लग्नेश का नीच राशि होकर 6, 8, 12 भावों में स्थित होना, लग्न में नीच राशि ग्रह, वक्री ग्रह 6, 8,12 के भावेश स्थित होना।
# उदाहरण कुंडली – यहां दी गई कुंडली पिशाच पीड़ित जातक की है। कुंडली की ग्रह स्थितियां पिशाच पीड़ा का योग बनाती हैं। 8 में मंगल 12वें में राहू स्थित है।
# बुध को छोड़कर कोई शुभग्रह केंद्र में स्थित नहीं है।
# लग्नेश बृहस्पति पर अष्टम भाव में स्थित नीच के मंगल की अष्टम दृष्टि है।
# चंद्रमा सूर्य से युत होकर अस्त है तथा अष्टमेश है एवं उसका स्वराशि कर्क से अशुभ द्विद्वादश संबंध है।
निम्रलिखित परिस्थितियां प्रेत पीड़ा का अवसर बनाती हैं – गंदा रहना, स्नान न करना, गंदे वस्त्र पहनना, गंदे स्थान पर निवास, झोंपड़ी बनाना, रास्ते चलते खाना, खाने के बाद हाथ-मुंह न धोना। खाली मकान, गंदे स्थान, एकांत स्थान, पीपल के पेड़ के पास, अकौड़े के पौधे के पास जाना, रहना या इन स्थानों का गंदगी करके अपमान करना। इत्र, सुगंधित पदार्थ लगाकर या लेकर बाहर निकलना, राह चलते मीठी वस्तु खाते रहना- ये वस्तुएं प्रेत को शीघ्र आकर्षित करती हैं क्योंकि उसे ये वस्तुएं बहुत पसंद हैं।