जाट आरक्षण आंदोलन के चलते मुरथल में सामूहिक दुष्कर्म व राज्य में हिंसा मामले में हाईकोर्ट ने 24 फरवरी 2016 को संज्ञान लेकर इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर जांच के आदेश दिए थे। इसमें कुल 2015 मामले दर्ज हैं, जिसमें से सरकार लगभग पांचवां हिस्सा 407 केस वापस लेना चाहती है।
जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा, आगजनी व सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को लेकर हाईकोर्ट द्वारा लिए गए संज्ञान मामले में सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी ने 407 एफआईआर वापस लेने की अनुमति को लेकर दाखिल हरियाणा सरकार की मांग का विरोध किया।
उन्होंने कहा कि प्रकाश सिंह कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इन 407 मामलों में से 129 को बेहद गंभीर बताया है, बावजूद इसके सरकार की मंशा आरोपियों को बचाने की है ताकि जाट वोटरों को साध सके।
गुरुवार को मामले की सुनवाई शुरू होते ही जाट आरक्षण आंदोलन के चलते मुरथल में सामूहिक दुष्कर्म व राज्य में हिंसा मामले की जांच की स्टेटस रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश की गई। पिछली सुनवाई पर हाईकोर्ट ने मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी के प्रभारी आईजी अमिताभ ढिल्लों से मामले की स्टेटस रिपोर्ट तलब की थी।
कोर्ट मित्र अनुपम गुप्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि इस मामले को लेकर कुल 2015 मामले दर्ज हैं, जिसमें से सरकार लगभग पांचवां हिस्सा 407 केस वापस लेना चाहती है। केस वापस लेने की अर्जी 2018 में दाखिल की गई थी और उस समय चुनाव का दौर था। अब दोबारा इस मांग को उठाया जा रहा है और चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में सरकार को इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि प्रकाश सिंह की कमेटी इन मामलों में से 129 को बेहद गंभीर बता चुकी है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद कार्यवाहक चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया व जस्टिस लुपिता बनर्जी पर आधारित डिवीजन बेंच ने सवाल उठाया कि एक एसआईटी 2000 के करीब मामलों की जांच कैसे कर सकती है। कोर्ट ने सभी पक्षों को बहस के लिए चार सप्ताह का समय देते हुए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। अब अगली सुनवाई पर एफआईआर वापस लेने की मांग पर हाईकोर्ट निर्णय लेगा।
बीते दिनों हरियाणा सरकार जाट आरक्षण आंदोलन के नेताओं पर दर्ज मामले वापस लेने पर विचार कर रही थी और संभावना थी कि इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार अर्जी को लेकर दोबारा अपनी मांग दोहराएगी।