दुनिया भर के युद्धों का इतिहास साहसी सैनिकों की शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है। जब भी ऐसे युद्धों की बात आती है कारगिल का नाम भारतीय सैनिकों की बहादुरी और हार न मानने के हौसले के लिए याद किया जाता है। असीम दुर्गम परिस्थितियों में जो अद्भुत वीरता भारतीय सैनिकों ने दिखाई है, इतिहास उसके बराबर की कोई मिसाल पेश नहीं कर सका है। चोटी पर मौजूद दुश्मनों को भारतीय सैनिकों की चुनौती ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
करीब 60 दिनों तक युद्ध चला और 26 जुलाई 1999 को कारगिल जंग में विजय की घोषणा हुई। इस युद्ध को दो दशक से अधिक वक्त गुजर चुका है। इसके बाद एक पूरी पीढ़ी तैयार हो चुकी है, जो इस युद्ध के अमर शहीदों की वीरता और शौर्य को अपने ह्रदय में संजो लेना चाहती है। यह युद्ध हर भारतीय को गर्व से भर देने वाला है और इसकी हर गाथा हमें राष्ट्रभक्ति के भाव से सराबोर कर देती है। आइए तीन किस्तों में जानते हैं कारगिल युद्ध की कहानी। आज पेश है पहली किस्त।
ऑपरेशन विजय से जवाब: इसे शुरुआत में घुसपैठ माना गया और कहा गया कि इन्हें कुछ दिनों में बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन घुसपैठियों की रणनीति जानकर भारतीय सेना को अहसास हुआ कि बड़े पैमाने पर हमले की योजना है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के तहत दो लाख सैनिक मोर्चे पर भेजे। मई में शुरू हुआ यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ।
चरवाहों से मिली सूचना: च्विटनेस टू ब्लंडर-कारगिल स्टोरी अनफोल्डच् किताब का दावा है कि पाक की 6 नार्दर्न लाइट इंफैंट्री के कैप्टन इफ्तेखार अपने सैनिकों के साथ कारगिल की आजम चौकी पर बैठे थे, तभी उन्हें भारतीय चरवाहे नजर आए। थोड़ी देर में चरवाहों के साथ भारतीय सेना के जवान भी पहुंचे। इसके बाद लामा हेलीकॉप्टर उड़ता हुआ आया। तभी पता लगा कि पाक सैनिकों ने कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया है।
पाकिस्तान ने रची ऑपरेशन बद्र की साजिश: भारत और पाकिस्तान के मध्य 1971 के बाद भी कई सैन्य संघर्ष होते रहे हैं। दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था। स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता के जरिए सुलझाने का वादा किया गया, लेकिन पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजना शुरू किया। जिसे ‘ऑपरेशन बद्र’ का नाम दिया गया। इसका उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़कर भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था।