ज़करबर्ग ने नहीं एक भारतीय ने की फ़ेसबुक की ‘खोज’?

एक सवाल, फ़ेसबुक किसने बनाया? जवाब सारी दुनिया जानती है, मार्क ज़करबर्ग। लेकिन पिछले कुछ सालों से एक झूठ फ़ेसबुक पर ही प्रचारित किया जा रहा है कि इसे उन्होंने नहीं बल्कि एक भारतीय ने बनाया था। इस झूठ पर लोगों की प्रतिक्रिया ज़बर्दस्त है। दरअसल इस मामले में तकनीकी झोल हैं जिन्हें समझने के लिए आज का सत्यखोजी आपको ध्यानपूर्वक पढ़ने की ज़रूरत है। पहले देखें वह तस्वीर जिसे लेकर यह दावा किया जा रहा है,

क्या आप जानते है ज़करबर्ग 'नहीं' इस 'भारतीय' ने की फ़ेसबुक की 'खोज'?यह ख़बर एक वेबसाइट के ज़रिए हाल में फिर से चर्चा में आ गई है। यह दावा पहले भी किया जाता रहा है। कुछ मिसालें देखें, फिर आपको सच बताते हैं।

यानी की वेबसाइट ने कोई नया झूठ नहीं बोला है। यह तो उससे पहले ही चर्चा में है। और ख़बर भी कुछ नहीं है, बस पहले के पोस्ट्स के कैप्शन को ज्यों का त्यों कॉपी करके चैप दिया है। इसकी हेडलाइन दो हिस्सों में है। पहले में कहा गया है कि फ़ेसबुक की खोज एक ‘भारतीय’ ने की थी, और दूसरी में कहा गया है कि ज़करबर्ग ने प्रॉजेक्ट चुराया था। साथ ही तस्वीर में लाल घेरे में दिखाए गए व्यक्ति को ही वह ‘भारतीय’ बताया गया है जिसने फ़ेसबुक की खोज की। लेकिन बाक़ी दो लोग कौन हैं? आज के सच में ये दोनों बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं। चलिए, अब आपको इस झूठ का सच बताते हैं।

सबसे पहले तो बता दें कि फ़ेसबुक की शुरुआत मार्क ज़करबर्ग ने ही की थी न कि किसी भारतीय ने। लेकिन बात पहले मार्क ज़करबर्ग बनाम विंकल्वास ब्रदर्स व दिव्य नरेंद्र  के बीच के विवाद की।

दरअसल जिस फ़ेसबुक को आज हम यूज़ कर रहे हैं, उसका आइडिया सबसे पहले टायलर विंकल्वास, कैमरन विंकल्वास (विंकल्वास ब्रदर्स) व दिव्य नरेंद्र ने ही HarvardConnection नाम की सोशल नेटवर्किंग साइट के रूप में खोजा था। बाद में इसका नाम ConnectU हो गया था। इन लोगों ने दिसंबर 2002 को सोशल नेटवर्किंग साइट का आइडिया निकाला और 21 मई, 2004 वेबसाइट लॉन्च की थी।

इससे पहले साइट शुरू करने के सिलसिले में एक सहायक के रेफ़रेंस पर विंकल्वास ब्रदर्स और दिव्य नरेंद्र ने मार्क ज़करबर्ग से संपर्क कर उन्हें अपने साथ काम करने का प्रस्ताव दिया जिसके बाद इन लोगों की मुलाक़ात हुई। विवाद के मुताबिक़ ज़करबर्ग एक मौखिक समझौते के तहत HarvardConnection में इन तीनों के पार्टनर बन गए। साइट के लिए काम करने को उन्हें  उसका प्राइवेट सर्वर लोकेशन और पासवर्ड दिए गए। आरोप है कि ज़करबर्ग अलग-अलग कारण देकर कई दिनों तक तीनों लोगों से नहीं मिले। कई बार टालने के बाद आख़िरकार 17 दिसंबर, 2003 को सभी सदस्य मिले। ज़करबर्ग ने विंकल्वास ब्रदर्स और नरेंद्र को बताया कि साइट लगभग पूरी हो चुकी है। 8 जनवरी 2004 को उन्होंने ईमेल कर बताया कि वह काम में पूरी तरह से लगे हुए हैं और कुछ बदलाव किए हैं जोकि काफ़ी बेहतर लग रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह 13 जनवरी 2004 को साइट को लेकर बातचीत कर सकते हैं। लेकिन आरोप के मुताबिक़ 11 जनवरी 2004 को ही ज़करबर्ग ने साइट को thefacebook.com डोमेन नेम से रजिस्टर करा लिया। 14 जनवरी को ज़करबर्ग HarvardConnection की टीम से मिले, लेकिन साइट के रजिस्ट्रेशन को लेकर कोई बात नहीं की। इतना कहा कि वह इस (HarvardConnection) पर आगे और काम करेंगे और टीम को इस बारे में मेल करेंगे। लेकिन 4 फ़रवरी, 2004 को ज़करबर्ग ने हावर्ड स्टूडेंट्स के लिए thefacebook.com को लॉन्च कर दिया। 6 जनवरी को विंकल्वास ब्रदर्स और दिव्य नरेंद्र को हावर्ड स्टूडेंट न्यूज़पेपर ‘हावर्ड क्रिमसन’ में छपी प्रेस रिलीज़ के ज़रिए इस बारे में पता चला। ज़करबर्ग  के इन सीनियर्स ने उन पर मुक़द्दमा किया और साल 2008 में मुक़द्दमे की सुनवाई पूरी हुई और अदालत के फ़ैसले के तहत फ़ेसबुक 65 मिलियन डॉलर का मुआवाज़ा देने को राज़ी हुआ।

इस मामले में मार्क ज़करबर्ग पर कई तकनीकी गड़बड़ियाँ करने के आरोप हैं। इस बारे में और भी ज़रूरी जानकारियाँ आप यहाँ क्लिक कर ले सकते हैं।

 

हम विंकल्वास ब्रदर्स का एक इंटरव्यू भी आपको दिखा रहे हैं जो इस पूरे विवाद की सही तस्वीर सामने रखता है। देखें,

यहाँ यह समझने की ज़रूरत है कि मामला HarvardConnection के आइडिया की चोरी का है। वह आइडिया जो अकेले विंकल्वास ब्रदर्स और दिव्य नरेंद्र तीनों का था, न कि अकेले दिव्य नरेंद्र का। ज़करबर्ग ने ऑरिजनल आइडिया लेकर उसके ही समक्ष एक प्रतियोगी वेबसाइट खड़ी कर दी। यानी फ़ेसबुक को किसी भारतीय ने नहीं बल्कि मार्क ज़करबर्ग ने ही बनाया है। आप इसे ऐसे समझें, जैसे हिन्दी सिनेमा की सबसे सफल फ़िल्मों में से एक शोले की कहानी (यानी आइडिया) The Magnificent Seven औरButch Cassidy and the Sundance Kid जैसी फ़िल्मों से ली गई थी। लेकिन हम यह नहीं कहते कि शोले को जॉन स्टर्जिस या जॉर्ज रॉय हिल्स ने बनाया था। सब शोले को रमेश सिप्पी की ही फ़िल्म कहते हैं, क्योंकि इसे उन्होंने ही बनाया। यही बात मार्क ज़करबर्ग पर भी लागू होती है। उन्होंने विंकल्वास ब्रदर्स और दिव्य नरेंद्र के आइडिया का ‘इस्तेमाल’ अपनी वेबसाइट बनाने के लिए ‘किया’, लेकिन इसके निर्माण के लिए दिव्य नरेंद्र और बाक़ी दोनों लोगों को क्रेडिट नहीं दिया जा सकता। यह तो रही पहली तकनीकी बात। अब दूसरी।

फ़ेसबुक को अगर दिव्य नरेंद्र ने बनाया भी होता, तो भी यह दावा संभव नहीं होता कि इसे एक भारतीय ने बनाया। क्योंकि नरेंद्र भारतीय नहीं अमेरिकन हैं और भारत  दोहरी नागरिकता की इजाज़त नहीं देता। आप भावनात्मक होकर उन्हें ज़बर्दस्ती भारतीय कह सकते हैं, लेकिन इससे सत्य और तथ्य दोनों ही नहीं बदलेंगे।
साल 2008 में दिव्य नरेंद्र ने ख़ुद ही फ़ेसबुक से समझौता कर सेटलमेंट कर लिया था।

कौन भारतीय नागरिक हो सकता है, यह जानने के लिए आपको भारत का सिटिज़नशिप ऐक्ट, 1955 पढ़ना चाहिए। और आपके संपर्क में अगर यह पोस्ट आए तो शेयर करने वाले व्यक्ति को हमारे इस पोस्ट का लिंक दे सकते हैं। हमारा मानना है, कि वैचारिक रूप से कमज़ोर लोग ही झूठ का सहारा लेते हैं।

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