आप सभी को बता दें कि इस बार अक्षय तृतीया 7 मई को है. ऐसे में इस दिन व्रत रखा जाता है और सोना खरीदा जाता है. इस दिन व्रत के दौरान अक्षय तृतीया की कथा को भी सुन्ना चाहिए जिससे लाभ मिलता है और सभी काम बन जाते हैं. तो आइए जानते हैं अक्षय तृतीया की कथा.

अक्षय तृतीया की कथा – प्राचीन काल में सदाचारी तथा देव – ब्रहामणों में विश्वास रखने वाला एक धर्मदास नामक वैश्य था. इसके परिवार के सदस्यों की संख्या बहुत ही अधिक थी. जिसके कारण धर्मदास हमेशा बहुत ही चिंतित तथा व्याकुल रहता था. धर्मदास को किसी व्यक्ति ने अक्षय तृतीया के व्रत के के महत्व के बारे में बताया. इसलिए इसने अक्षय तृतीया के दिन इस व्रत को करने की ठानी. जब यह पर्व आया तो धर्मदास ने प्रातः उठकर गंगा जी में स्नान किया और इसके बाद पूरे विधि – विधान से देवी – देवताओं की पूजा की. उसने गोले (नारियल) के लड्डू, पंखा, चावल, दही, गुड़, चना, जौ, गेहूं, नमक, सत्तू, पानी से भरा हुआ मिटटी का घड़ा, सोना, वस्त्र तथा अन्य दिव्य वस्तुओं का दान ब्राह्मण को दिया.
धर्मदास ने वृद्ध अवस्था में रोगों से पीड़ित होने पर तथा अपनी पत्नी के बार – बार माना करने पर भी दान – पुण्य करना नहीं छोड़ा. ऐसा माना जाता हैं कि जब धर्मदास की मृत्यु हो गई तो उसने दुबारा से मनुष्य के रूप में जन्म लिया. लेकिन इस बार उसका जन्म कुशावती के एक प्रतापी और धनी राजा के रूप में हुआ. कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना.
वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेश धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे. अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ. माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ.
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