जम्मू कश्मीर में पराली नहीं, वाहन और कारखानों का प्रदूषण है चुनौती

जम्मू-कश्मीर में आने वाले दिनों में अगर प्रदूषण की रफ्तार बढ़ती है तो पहले से कोरोना महामारी से लड़ रहे दमा, सांस और हृदयरोग से ग्रस्त मरीजों के लिए यह बेहद खतरनाक होगा। हालांकि जम्मू कश्मीर में पराली जलाने पर प्रतिबंध है, उसपर अच्छी बात यह है कि प्रदेश में पराली नाममात्र ही जलाई जाती है। जम्मू के किसान पराली जलाने के बजाए उसे ज्यादातर पशु चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं। अलबत्ता, यदि प्रशासन और आम लोग समय से नहीं चेते तो यहां वाहनों और कारखानों से निकलने वाला धुआं खतरे का बड़ा कारण बन सकता है।

वातावरण में फैलने वाले वायु प्रदूषण में 60 फीसद हिस्सेदारी वाहनों से निकलने वाले धुएं की है। जम्मू कश्मीर में 18 लाख पंजीकृत वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं। जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने 15 वर्ष पुराने कमर्शियल डीजल के वाहनों के सड़कों पर चलने पर प्रतिबंध लगाया है, फिर भी दूरदराज पहाड़ी इलाकों में ऐसे वाहन धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। जिस प्रकार से वाहनों की संख्या प्रदेश में बढ़ी है, उसके अनुसार सड़कों का विस्तार नहीं हुआ। टूटी सड़कें भी प्रदूषण को बढ़ाने का कारण बन रही हैं। जम्मू शहर के व्यस्त सतवारी, बिक्रम चौक, अंबफला और डोगरा चौक ऐसे हैं, जहां प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक है। बीते दो साल में यहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 343 फीसद रहा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने वर्ष 2018 में जम्मू और श्रीनगर शहरों की आबोहवा को प्रदूषित श्रेणी में रखा था। देश भर से 122 प्रदूषित शहरों में जम्मू और श्रीनगर भी शामिल हैं।

कश्मीर में आतंकवाद के दौर में भी बढ़ा प्रदूषण : कश्मीर में बीते चार दशक से जारी आतंकवाद भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण रहा। आतंकवाद के दौर में कोई पूछने वाला नहीं था। इस दौर में हरे-भरे जंगलों को स्वार्थ के लिए काटा गया। प्रदूषण बढ़ता देख केंद्र की स्वीकृति पर राज्य सरकार ने एयर क्वालिटी मॉनिटङ्क्षरग कमेटी का गठन किया। जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव बृज मोहन शर्मा का कहना है कि कमेटी कि सिफारिश पर ही प्रदेश में पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया। वहीं जम्मू के सीमावर्ती इलाके बिश्नाह के किसान विजय सैनी का कहना है कि सीमावर्ती क्षेत्र के किसान पराली को हरे चारे में मिलाकर मवेशियों को खिलाते हैं, जलाते नहीं।

लॉकडाउन में सुधर गई थी प्रदूषण की स्थिति : जम्मू कश्मीर नियंत्रण बोर्ड के सचिव बृज मोहन शर्मा का कहना है कि पराली और कचरा जलाने से जम्मू में केवल 10 से 15 फीसद ही प्रदूषण फैलता है। सरहद पर हवा का रुख ऐसा है कि यह प्रदूषण भी साथ लगते पाकिस्तान की ओर चला जाता है। 10 फीसद प्रदूषण औद्योगिक क्षेत्रों से निकलता है, जबकि निर्माण गतिविधियों से सात फीसद प्रदूषण फैल रहा है। कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन में जम्मू शहर का प्रदूषण स्तर 20 माइको ग्राम पर क्यूबिक दर्ज किया गया था, जो अब तक की सबसे न्यूनतम दर रही। बीते वर्ष दीपावली से पहले प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे न चलाने पर स्कूली छात्रों को जागरूक किए जाने के भी अच्छे परिणाम दिखे थे।

कोरोना महामारी के बीच यदि आने वाले दिनों में प्रदूषण फैलता है तो इसका असर सभी लोगों पर पड़ेगा। चाहे दमा के मरीज हों, बूढ़े या बच्चे। प्रदूषण सभी को प्रभावित करेगा। प्रदूषण से बचने के लिए विशेषकर दमा के मरीज घर से न निकलें। अन्य लोग भी मास्क पहनें और एहतियात बरतें।

 

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