ग्वालियर हाई कोर्ट के एक जज ने केस की सुनवाई में वकीलों के मौजूद नहीं रहने पर अनोखा निर्देश दिया है। जज ने एक वकील को कहा है कि वह एक पीपल का पौधा लगाएं। जज ने एक अन्य वकील को आश्रय गृह का दौरा करने को कहा। यह दोनों वकील अपने संबंधित मामलों की सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं हुए जिसे बाद में खारिज कर दिया गया। वकीलों द्वारा आदेश का पालन करने के बाद खारिज केसों की सुनवाई हो पाएगी।
दोनों वकीलों ने जज के आदेश का स्वागत किया है। वरिष्ठ वकील शैलेंद्र सिंह कुशवाहा 4 दिसंबर को 35 श्रमिकों के दैनिक भत्ते से संबंधित केस की सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं हुए थे। उन्होंने कहा कि जस्टिस आनंद पाठक ने उन्हें 10 दिनों के भीतर एक पीपल का पेड़ लगाने का निर्देश दिया है, जिसके बाद खारिज किया गया मामला बहाल हो पाएगा।
कुशवाहा ने कहा है कि, ‘जस्टिस आनंद पाठक की यह बहुत अच्छी पहल है क्योंकि अगर हम अदालत में उपस्थित रहने में असफल होते हैं तो इससे हमें पर्यावरण के लिए कुछ करने का मौका मिलेगा। हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी में इतने व्यस्त रहते हैं कि हमें पेड़ लगाने या बागवानी करने जैसी किसी चीज के लिए समय ही नहीं मिल पाता।’
वकील कुशवाहा ने कहा कि सुनवाई की तारीख पर वकीलों की गैरमौजूदगी के कारण हर साल हजारों केस बर्खास्त कर दिेए जाते हैं। अगर ऐसे निर्देश अक्सर आएं, तो हम शहर की हरियाली को बढ़ा सकते हैं। इससे हमें प्रकृति के साथ समय गुजराने और चिंतन का समय मिलेगा।
‘जीवन की कठोर परिस्थितियों को देखना का समय नहीं मिलता’
एक अन्य वरिष्ठ वकील एचके शुक्ला ने संपत्ति विवाद के एक मामले में दूसरी अपील की है। वह भी जब सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं हुए तो उनका मामला भी खारिज कर दिया गया। जज ने शुक्ला को 15 दिनों के भीतर एक आश्रय गृह का दौरा करने का निर्देश दिया है, और वहां एक घंटा बिताने के साथ ही लिखित रूप में अपनी यात्रा का अनुभव साझा करने को कहा है, जिसके बाद उसका मामला बहाल होगा।
उन्होंने कहा, ‘यह एक बहुत अच्छा निर्देश है क्योंकि इससे मुझे आत्मावलोकन के लिए समय मिलेगा। हम अपने रूटीन में इतने व्यस्त रहते हैं कि कठोर जमीनी वास्तविकताओं को देखने के लिए समय ही नहीं निकाल पाते हैं।’
शुक्ला ने कहा कि वह बाल सुधार केंद्र जाकर विकलांग बच्चों और उनकी देखभाल करनेवालों से मिलेंगे और बातचीत करेंगे।