जब सफलता सिर चढ़कर बोलती है, दशकों की छवि क्षणों में धराशायी हो जाती है

सिनेमा प्रारंभ में जनसरोकारों एवं जनभावनाओं को लेकर चली। स्वाभाविक है कि उसे आशातीत सफलता एवं स्वीकार्यता मिली। कालांतर में जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती गई, भव्यता, नवीनता, कल्पनाशीलता का संचार हुआ। संवाद, संगीत, अभिनय का रुपहले पर्दे पर भव्य, जीवंत एवं सजीव चित्रण होता गया।

सिनेमा और उससे जुड़े कलाकारों का दर्शकों पर जादू-सा असर होता चला गया। अपार यश, वैभव एवं लोकप्रियता के रथ पर सवार इन सिने कलाकारों को समाज ने न केवल सिर-माथे बिठाया, बल्कि महानायकत्व के तमाम विशेषणों से भी उन्हें विभूषित किया। ऐसी लोकप्रियता, प्रसिद्धि, समृद्धि अतिरिक्त सतर्कता, अनुशासन एवं संतुलन की अपेक्षा रखती है, अन्यथा यह सफलता व्यक्ति के सिर चढ़कर बोलने लगती है और दशकों के पुरुषार्थ एवं मान, प्रतिष्ठा और पूंजी क्षणों में धराशायी हो जाती है।

सिने जगत और उसके तमाम सितारों के साथ आज ऐसा ही कुछ होता दिख रहा है। समय आ गया है कि इन सिने कलाकारों को अपना ईमानदार मूल्यांकन एवं आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि ऐसा क्या हुआ कि आज अचानक उनकी साख पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, उनके सरोकारों पर सवाल उठाए जा रहे हैं?

क्या कंगना रनोट एवं रवि किशन द्वारा बॉलीवुड में ड्रग्स के चलन की उठाई गई बात सिने-जगत और उससे जुड़े कलाकारों को बदनाम करने जैसा सरलीकृत मुद्दा है? क्या जिस थाली में खाया, उसी में छेद करने जैसे भावात्मक मुहावरों को उछाल इतने गंभीर प्रश्नों से मुंह मोड़ा जा सकता है?

क्या यह एक गंभीर समस्या के समाधान के प्रयास एवं पहल को खारिज करना नहीं है? ऐसे उतावले भरे एवं प्रतिक्रियात्मक निष्कर्षो से क्या आम जन में यह संदेश नहीं जाएगा कि दाल में अवश्य कुछ काला है? अच्छा तो यह रहता कि ड्रग्स के धंधे और सेवन में कुछ सितारों के लिप्त पाए जाने के आरोपों के बीच कुछ जिम्मेदार कलाकार सामने आकर समाज एवं व्यवस्था को आश्वस्त करते कि वे ड्रग माफियाओं के विरुद्ध छेड़े गए इस अभियान में आम जन के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े हैं।

सिने-जगत के स्थापित कलाकारों की जिम्मेदारी बड़ी है। युवा वर्ग पर इनका व्यापक प्रभाव है। वे उन्हें आदर्श मान उनका अनुसरण करते हैं। अत: इन कलाकारों का दायित्व बनता है कि वे इन आरोपों के बरक्स अपने जीवन और व्यवहार में बदलाव लाएं। निजता की ओट लेकर अपराध की श्रेणी में आने वाली आदतों एवं जीवनशैली का सुविधावादी बचाव न करें। उन्हें अपने जीवन के विरोधाभासों एवं विसंगतियों को दूर कर सर्व स्वीकृत जीवन-व्यवहार एवं आचरण आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए।

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