भगवान राम की पूजा कौन नहीं करता है। हर साल राम नवमी का पर्व बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। ऐसे में इस पर्व को मनाने के लिए श्री राम का व्रत रखा जाता है और पूरे दिन उन्ही के गुणगान किए जाते हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने जा आरहे रहे हैं श्री राम से जुड़ी एक ऐसी कथा जिसमे उन्होंने अपने ही भाई यानी लक्ष्मण को मृत्यदंड दे दिया था।
राम ने दे दिया था लक्ष्मण को मृत्युदंड:
जब श्री राम लंका विजय करके अयोध्या लौट आए और अयोध्या के राजा बन गए। एक दिन यम देवता चर्चा करने श्री राम के पास आए। उन्होंने श्रीराम से कहा कि आप जो भी प्रतिज्ञा करते हैं उसे पूर्ण करते हैं। मैं भी आपसे एक वचन मांगता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना पड़ेगा।
भगवान राम ने यम को वचन दे दिया। राम ने लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर दिया कि जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वो किसी को भी अंदर न आने दे, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो गए। लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय बीता कि वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन हुआ। जब दुर्वासा ने लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिये कहा तो लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गए तथा उन्होने सम्पूर्ण अयोध्या को शाप देने की बात कही।
लक्ष्मण समझ गए कि ये एक विकट स्थिति है जिसमें या तो उन्हें रामाज्ञा का उल्लंघन करना होगा या फिर संपूर्ण नगर को ऋषि के शाप की अग्नि में झोंकना होगा। लक्ष्मण ने शीघ्र ही यह निश्चय कर लिया कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा ताकि वो नगर वासियों को ऋषि के शाप से बचा सकें। उन्होने भीतर जाकर ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी।
राम भगवान ने शीघ्रता से यम के साथ अपनी वार्तालाप समाप्त कर ऋषि दुर्वासा की आवभगत की। परन्तु अब श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्यु दंड देना था। वो समझ नहीं पा रहे थे कि वे अपने भाई को मृत्युदंड कैसे दे, लेकिन उन्होंने यम को वचन दिया था जिसे निभाना ही था।
इस दुविधा की स्थिति में श्री राम ने अपने गुरु का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा। गुरु देव ने कहा कि अपने किसी प्रिय का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है। अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो। लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा की आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है कि मैं आपके वचन का पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूं। ऐसा कहकर लक्ष्मण ने जल समाधि ले ली।