तुकाराम ओंबले मुंबई पुलिस के वह जांबाज सिपाही थे, जिन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि कर्त्तव्यपथ पर अडिग हमारे प्रहरियों का जज्बा ही आतंक की बड़ी से बड़ी बंदूक पर भारी है। उन्होंने आतंकी अजमल कसाब का बिना किसी हथियार के सामना किया और उसे दबोच लिया। उन्होंने केवल एक लाठी के सहारे एके-47 से लैस आतंकी कसाब को जिंदा पकड़ा था। इस कोशिश में वह खुद शहीद हो गए थे। आज पुलिस शहीद स्मृति दिवस है। देश अपने ऐसे जांबाज प्रहरियों को सलाम कर रहा है, जो फर्ज पर कुर्बान हो गए। संसद हमला हो या मुंबई टेरर अटैक, हमारे इन प्रहरियों ने सर्वोच्च बलिदान देकर हमारी और देश की आन-बान-शान की रक्षा की।
26 नवंबर 2008 की वो काली रात
पाकिस्तान से पानी के रास्ते मुंबई में उतरे 10 आतंकियों में से दो, इस्माइल खान और मोहम्मद अजमल कसाब सीएसएमटी रेलवे स्टेशन एवं उसके निकट ही स्थित कामा अस्पताल में भीषण नरसंहार करने के बाद तीन जांबाज पुलिस अधिकारियों तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे एवं एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस निरीक्षक विजय सालस्कर को लड़ने का मौका दिए बिना ही मारकर उन्हीं की गाड़ी हथिया चुके थे। इन तीनों अधिकारियों पर ताबड़तोड़ गोलीबारी के दौरान ही इनकी टाटा सूमो कार का एक पहिया पंचर हो चुका था। इसलिए जब इन तीनों पुलिस अधिकारियों को रंगभवन के पास तड़पता छोड़ इनकी गाड़ी लेकर दोनों आतंकी नरीमन प्वाइंट की ओर बढ़े तो गाड़ी बुरी तरह लहरा रही थी। विधानभवन तक पहुंचते-पहुंचते जब गाड़ी को आगे चलाना मुश्किल हो गया तो पुलिस की वह टाटा सूमो वहीं छोड़ दोनों आतंकियों ने वहां से गुजर रही एक स्कोडा कार को एके-47 दिखाकर हथिया लिया।
इस्माइल ने स्टीयरिंग संभाली और समुद्र के किनारे-किनारे मलाबार हिल्स की तरफ बढ़ा। मुख्यमंत्री निवास और राजभवन इसी तरफ हैं। दोनों के इरादे शायद कुछ ज्यादा ही खतरनाक थे। मुंबई का नक्शा उनके पास था, और जीपीएस से उन्हें गंतव्य ढूंढने में मदद मिल रही थी। लेकिन तब तक मुंबई पुलिस आतंकी हमले से सजग हो चुकी थी।
मरीन ड्राइव पर चौपाटी के पास 15 पुलिसकर्मियों को बैरीकेडिंग के साथ तैनात किया जा चुका था। सहायक निरीक्षक तुकाराम ओंबले इसी दल का हिस्सा थे। इस्माइल और कसाब विधानभवन के पास से आगे बढ़े तो पंचर हो चुकी टाटा सूमो में पड़े मृत होने का नाटक कर रहे वायरलेसकर्मी ने सूचना प्रसारित कर दी कि दोनों आतंकी स्कोडा कार में वहां से निकल चुके हैं। यह संदेश चौपाटी के पास तैनात पुलिस दल ने भी सुना और चौकन्ना हो गया।
स्कोडा कार जैसे ही चौपाटी के निकट पहुंची, इस्माइल ने बैरीकेडिंग और पुलिस बंदोबस्त देख कार यू-टर्न करने की कोशिश की। लेकिन तब तक पुलिस बल ने स्कोडा को घेर लिया। घिरा देख कसाब ने फायरिंग की। जवाब में पुलिस बल की ओर से हुई फायरिंग में कार चला रहा इस्माइल मौके पर ही मारा गया और कसाब मारे जाने का नाटक करने लगा। कार रुकने के बाद जैसे ही आतंकियों को बाहर निकालने के लिए तुकाराम ओंबले ने कसाब की तरफ का दरवाजा खोला, तैसे ही कसाब ने एके-47 से बेहिसाब फायर तुकाराम पर झोंक दिया। लेकिन तुकाराम ने कसाब की गन का बैरल पकड़कर उसे सीट पर ही दबा डाला। जिसके कारण कसाब की गन किसी और की ओर रुख नहीं कर सकी और पुलिस कसाब को जिंदा पकड़ने में कामयाब रही। तुकाराम ओंबले को उनकी इस बहादुरी के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
21 अक्टूबर को क्यों
पुलिस (शहीद) स्मृति दिवस प्रत्येक वर्ष 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। प्रतिवर्ष औसत 1000 पुलिसकर्मी कर्त्तव्यपथ पर अडिग रह सर्वोच्च बलिदान कर जाते हैं। पुलिस स्मृति दिवस के महत्व के बारे में सीआरपीएफ की बहादुरी का एक किस्सा है, 21 अक्टूबर 1959 में लद्दाख में तीसरी बटालियन की एक कंपनी को भारत-तिब्बत सीमा की सुरक्षा के लिए ‘हाट-स्पि्रंग’ में तैनात किया गया था। कंपनी को टुकडि़यों में बांटकर चौकसी करने को कहा गया। जब बल के 21 जवानों का गश्ती दल ‘हाट-स्पि्रंग’ में गश्त कर रहा था। तभी चीनी फौज के एक बहुत बड़े दस्ते ने इस टुकड़ी पर घात लगाकर हमला बोल दिया। लेकिन हमारे महज 21 जवानों ने डटकर मुकाबला किया। मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए 10 वीर जवानों ने प्राणों का बलिदान दिया। तब से हर साल 21 अक्टूबर को देश के सभी केंद्रीय पुलिस संगठनों व सभी राज्यों की सिविल पुलिस द्वारा पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है।