एकतरफ गहमागहमी वाला महानगर, तो दूसरी तरफ दक्षिण सुमात्रा प्रांत की रूढ़िवादी राजधानी, एशियाई खेलों के दो मेजबानों जकार्ता और पालेमबांग में वास्तव में जमीन आसमान का अंतर है. इन दोनों शहरों को देखकर पूरी विरोधाभासी तस्वीर स्पष्ट नजर आती है, भले ही संपूर्ण इंडोनेशिया सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य में तेजी से बढ़ते इस्लामिक प्रभाव से जूझ रहा है.
जकार्ता में गगनचुंबी इमारतें
जकार्ता किसी भी अन्य आधुनिक शहर की तरह लगता है, जहां गगनचुंबी इमारतें आपका स्वागत करती हैं. दूसरी तरफ पालेमबांग में महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य है. इन दोनों शहरों में केवल एक ही समानता है और वह बॉलीवुड और उसके मशहूर अभिनेता शाहरुख खान के प्रति प्यार.
पालेमबांग शहर थोड़ा रूढ़िवादी
स्वाभाविक था कि जब जकार्ता के साथ पालेमबांग को भी एशियाई खेलों का सह मेजबान चुना गया, तो चिंता जताई गई थी. खेलों की आयोजन समित के मीडिया प्रमुख मोहम्मद बुलदनशाह ने पीटीआई से कहा, ‘हां, इसको लेकर चिंता थी. हम आश्वस्त नहीं थे कि क्या पालेमबांग में इतने होटल हैं, जो खेलों के दौरान बढ़ी मांग की पूर्ति कर सकें. इसके अलावा वह शहर पारंपरिक और थोड़ा रूढ़िवादी भी है.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन हमारे पास समय कम था और वहां आधारभूत ढांचा था. इसके अलावा दक्षिण सुमात्रा के गवर्नर ने बेहद सहयोगी रवैया अपनाया.’
पालेमबांग अंतरराष्ट्रीय शहर नहीं
पालेमबांग अंतरराष्ट्रीय शहर नहीं है. निश्चित तौर पर वह इंडोनेशिया की अच्छी तस्वीर पेश नहीं करता, लेकिन यह भी सच्चाई है कि उसका खेलों से जुड़ा इतिहास रहा है और उसने 2011 में दक्षिणपूर्वी एशियाई खेलों की मेजबानी की थी.
ऐसे मिली इंडोनेशिया को मेजबानी
जकार्ता राजधानी होने के साथ 1962 एशियाड का भी मेजबान रहा है और वह पहली पसंद था. शुरू में देश के दूसरे सबसे बड़े शहर सुरबाया को एशियाई खेलों की मेजबानी के लिए चुना गया था, लेकिन 2012 में वह मेजबान शहर की दौड़ में हनोई से पिछड़ गया था. लेकिन दो साल बाद वियतनाम ने वित्तीय कारणों से मेजबानी से हाथ खींच लिये और ऐसे में एशियाई ओलंपिक परिषद (ओसीए) ने इंडोनेशिया को मेजबान देश के रूप में चुना.