माता गौरी की पूजा की जाती है और इस तिथि को तीज की तरह मनाया जाता है, जिससे सुहाग और संतान की रक्षा होती है. कहा जाता है इस दिन व्रत करने से महिलाएं संतान और पति सुख हांसिल करती है और इसी के साथ इससे कन्याओं को मनचाहा पति मिल जाता है. आप सभी को यह भी बता दें कि यह दिन महिला या कन्या तीज की तरह सजती संवरती हैं और मेहंदी लगाती हैं. इसी के साथ सुहागिन महिलाएं दुल्हन की तरह सजती और सज संवर कर मंदिर जाती हैं. कहते हैं इस दिन शिव भगवान के साथ उनके पूरे परिवार की पूजा करते हैं जो लाभदायक मानी जाती है. अब आइए जानते हैं गौरी तृतीया की व्रत कथा.
व्रत कथा – गौरी तृतीया शास्त्रों के कथन अनुसार इस व्रत और उपवास के नियमों को अपनाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है स्त्रियों को दांपत्य सुख व संतान सुख की प्राप्ति होती है. गौरी तृतीया व्रत की महिमा के संबंध में पुराणों में उल्लेख प्राप्त होता है जिसके द्वारा यह स्पष्ट होता है कि दक्ष को पुत्री रुप में सती की प्राप्ति होती है. सती माता ने भगवान शिव को पाने हेतु जो तप और जप किया उसका फल उन्हें प्राप्त हुआ.
माता सती के अनेकों नाम हैं जिसमें से गौरी भी उन्हीं का एक नाम है. शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को भगवान शंकर के साथ देवी सती विवाह हुआ था अतः माघ शुक्ल तृतीया के दिन उत्तम सौभाग्य की कृपा प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया जाता है. यह व्रत सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है.
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