बदलती जीवनशैली, शरीर को अधिक आरामदायक बनाना और गिरते पारे से युवाओं में यंग स्ट्रोक का खतरा बढ़ा है। अमूमन 55-60 वर्ष की आयु में होने वाले स्ट्रोक की समस्या अब 35 से 40 वर्ष के युवाओं को हो रही है।
सुपर स्पेशलिटी के न्यूरोलाजी विभाग की ओपीडी में रोजाना ब्रेन स्ट्रोक के 4-5 मामले पहुंच रहे हैं। इनमें 1-2 यंग स्ट्रोक के हैं। ठंड में यंग स्ट्रोक का मुख्य कारण ब्लड प्रेशर में उतार चढ़ाव और मधुमेह बन रहा है। डाक्टरों के अनुसार ब्लड प्रेशर को नजरअंदाज करना युवाओं के लिए घातक साबित हो रहा है।
सुपर स्पेशलिटी के न्यूरोलाजी विभाग में कार्यरत न्यूरोलाजिस्ट डॉ. हरदीप कुमार ने बताया कि दिमाग की नसों में किन्हीं कारणों से रक्त, आक्सीजन और अन्य जरूरी तत्वों की सप्लाई रुक जाने पर स्ट्रोक की समस्या आती है।
इसमें 80 फीसदी स्ट्रोक के मामलों में खून की सप्लाई में ब्लाकेज हो जाती है। स्कीमिक स्ट्रोक में खून की नसें सिकुड़ जाती हैं, जिससे खून की सप्लाई में बाधा आती है। इसी तरह थ्रोंबोटिक स्ट्रोक में ब्लड का क्लाट नसों में फंस जाता है, जो खून की सप्लाई को बाधित करता है।
इंबोलिक स्ट्रोक में हृदय या शरीर के अन्य हिस्से से क्लाट दिमाग में आकर फंस जाता है। हैमरोजिक स्ट्रोक में सप्लाई तेज होने से खून की नस फट जाती है। इसका मुख्य कारण हाई ब्लड प्रेशर, खून का अधिक पतला होना, खून की नस कमजोर पड़ना रहता है।
स्ट्रोक के अधिकांश मामलों में पुरुष प्रभावित होते हैं। फास्ट (फेस, आर्म, स्पीच और टाइम) में सामान्य गतिविधियों में बदलाव आने पर स्ट्रोक के लक्षण होते हैं। इन लक्षणों को शुरू से ही गंभीरता से लेकर पीड़ित को स्ट्रोक से बचाया जा सकता है।