पंजाब विश्वविद्यालय से राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. गुरमीत सिंह ने कहा कि सुखबीर बादल का प्रधान पद से इस्तीफा कई मायने रखता है। अहम मायने की अगर बात करें बेअदबी के आरोपों और तनखाहिया करार दिए जाने के बाद यह अपनी राजनीतिक छवि को साफ करने की ओर कदम है।
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) प्रमुख सुखबीर बादल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते ही पंजाब के राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गई है। सियासी जानकार इसे सुखबीर का मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा हैं, क्योंकि शिअद में बगावत के सुर उठने और सुधार लहर के नाम से अलग धड़ा बनते ही श्री अकाल तख्त साहिब के सख्त रवैये को देखते हुए सुखबीर ने सबसे पहले अपने करीबी बलविंदर सिंह भूंदड़ को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया।
तनखाहिया करार होने के बाद पंथक सियासत में अपना वर्चस्त कायम रखने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के चुनाव में अपने भरोसेमंद हरजिंदर सिंह धामी का नाम आगे किया। उनके प्रधान बनते ही अपने दूसरे मंसूबे में सफलता हासिल की। अब इस्तीफे के जरिये सुखबीर ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए पंथक सियासत और पंथ की एकजुटता के सहारे भंवर में फंसे अकाली दल को बाहर निकालने और अपनी खोई हुई सियासी जमीन दोबारा पाने के लिए अहम कदम उठाया है।
प्रदेश में शिअद-भाजपा की सरकार के समय जून 2015 में हुए बरगाड़ी बेअदबी कांड व कोटकपूरा व बहिबलकलां गोलीकांड की घटनाओं ने पार्टी को पतन की ओर धकेल दिया। 2017 और 2022 में विधानसभा चुनाव से शिअद का राजनीतिक ग्राफ गिरने के पीछे बेअदबी की घटनाओं को मुख्य रूप से देखा जाने लगा। यहां तक कि विपक्षी दलों ने भी बेअदबी की घटनाओं को प्रमुखता से उठाया। इससे शिअद पर दबाव बढ़ता गया।
अब पंथक सियासत और एकजुटता पर फोकस
प्रधानगी से इस्तीफा देकर सुखबीर ने न केवल बागी गुट सुधार लहर के सियासी मंसूबों पर विराम लगा दिया, बल्कि उन पर परिवारवाद, दबाव और एकतरफा राजनीति को लेकर उठने वाली अंगुलियों को भी नीचे कर दिया है। पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल के करीबी रहे एक सियासी जानकार के अनुसार अब सुखबीर पंथक सियासत और एकजुटता को बढ़ावा देकर न केवल अपने सियासी जमीन को दोबारा पाने का प्रयास करेंगे, बल्कि शिअद को क्षेत्रीय पार्टी के रूप में दोबारा खड़ा करेंगे। राजनीतिक कयासों की अगर बात करें तो यह कदम भाजपा के साथ गठबंधन की ओर भी बढ़ सकता है।
राजनीतिक छवि को साफ करने का प्रयास
पंजाब विश्वविद्यालय से राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. गुरमीत सिंह ने कहा कि सुखबीर बादल का प्रधान पद से इस्तीफा कई मायने रखता है। अहम मायने की अगर बात करें बेअदबी के आरोपों और तनखाहिया करार दिए जाने के बाद यह अपनी राजनीतिक छवि को साफ करने की ओर कदम है। दूसरा शिअद के लिए श्री अकाल तख्त सर्वाेपरि है। पार्टी का पंथक वजूद रहा है। यह कदम पंथक सियासत को मजबूत करेगा। इसके अलावा अगर बाकी पार्टियों की बात करें तो आम आदमी पार्टी पंजाब में नए प्रधान पद की बात चल रही है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ इस्तीफा दे चुके हैं, ऐसे में पार्टी को दोबारा मजबूत करने के लिए समय मिलेगा।